विश्व पर्यटन दिवस की पूर्व संध्या पर चमोली जिले के गुमनाम पर्यटन स्थल सरकार की राह निहार रहे हैं। अगर इन पर्यटन स्थलों को पहचान मिल सके तो स्थानीय बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार मुहैया हो सकता है। पलायन भी काफी हद तक रुक सकता है। ट्रैकिंग और होटल व्यवसायी विमल मलासी, अतुल शाह, हीरा सिंह गढ़वाली और राहुल मेहता का कहना है कि कोरोना काल में व्यवसाय समाप्त हो गया है। यदि इन गुमनाम पर्यटन स्थलों को विकसित किया जाता है तो क्षेत्र की आर्थिकी बदल सकती है।
दुर्मी ताल : यह निजमुला घाटी में है। 20 जुलाई 1970 को भारी भूस्खलन और बारिश की वजह से ध्वस्त हो गया था। दुर्मी ताल के पुनर्निर्माण से न केवल जनपद चमोली में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा अपितु रोजगार के अवसर भी सृजित होंगें। ईराणी गांव के ग्राम प्रधान मोहन नेगी का कहना है कि यहां नौकायन और राफ्टिंग, वाटर स्पोर्ट्स, मत्स्य पालन, लघु जल विद्युत् परियोजना, बतख पालन, फूल उत्पादन से लोगों की जिंदगी बदल सकती है। स्थानीय लोगों, होटल मालिकों, वाहन स्वामी, होमस्टे संचालकों, हस्तशिल्पियों को रोजगार मिल सकेगा। यही नहींं इससे 12 महीने पर्यटन को पंख लगेंगे।
बंडीधूरा ट्रैक: बंडीधूरा ट्रैक दुनिया की नजरों से दूर है। यह प्रकृति की अनमोल नेमत है। चमोली जनपद के दशोली ब्लाॅक के बंड पट्टी में मौजूद बंडीधूरा बुग्याल ट्रैक गुमनाम है। हिमालय की गगनचुम्बी हिमाच्छादित चोटियों से घिरे इस ट्रैक पर वन्य प्राणियों को बेहद नजदीक से देखा जा सकता है। यहां से हिमालय की त्रिशूल लेकर केदारनाथ, चैखंबा, नीलकंठ, कामेट, गौरी पर्वत, हाथी पर्वत, नंदादेवी, नंदा घुघटी, सहित हिमालय की कई पर्वत श्रेणी, औली, गोरसों, सिंबे बुग्याल, नरेला, बालपाटा, रामणी, वेदनी बुग्याल, आली बुग्याल, रूद्रनाथ, चोपता, चिनाप, बंशीनारायण, जैसे मखमली बुग्यालों को देखा जा सकता है। यहां राज्य वृक्ष बुरांस, राज्य पक्षी मोनाल, राज्य पशु कस्तूरी मृग भी देखने को मिलते हैं। बंडीधूरा बुग्याल हिमालय में मौजूद एकमात्र ऐसा स्थान है जहां से एक साथ पंचकेदारों केदारनाथ, मद्दमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर मंदिर के शीर्ष शिखर के दीदार होते हैं। पंच बदरी के शीर्ष शिखर भी दिखाई देते हैं। यहां से दिखाई देने वाला नंदा घुंघुटी का अलौकिक सौंदर्य हर किसी को आनंदित करता है। यहां से पौडी, लैंसडाउन, कार्तिक स्वामी, चंद्रबदनी सहित दर्जनों शहर और मंदिरों के दर्शन होते हैं। बंडीधूरा बुग्याल के पांच किलोमीटर की परिधि में शिलाखर्क, गद्दी खर्क, सहित दर्जनों छोटे छोटे बुग्याल और ताल हैं।
सप्तकुंड- सात झीलों का मनमोहक संसार: प्राकृतिक खजानों से भरी पड़ी चमोली की निजमुला घाटी में झींझी गांव से 24 किलोमीटर दूर झीलों का अलौकिक संसार है। सप्तकुंड यानी सात झीलें एक-दूसरे से आधे-आधे किलोमीटर के फासले पर हैं। समुद्र तल से लगभग पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में मौजूद सात झीलों की मौजूदगी अपने आप में कौतूहल और आश्चर्य का विषय है। सप्तकुंड पहुंचने के लिए एशिया के सबसे कठिन पैदल ट्रैक को पार करना पड़ता है। देवभूमि एडवेंचर एवं ट्रैकर के प्रबंधक और सप्तकुंड ट्रैकिंग कराने वाले युवा मनीष नेगी कहते हैं कि सप्तकुंड में मौजूद सात झीलों में से छह झीलों में पानी बेहद ठंडा जबकि एक झील में पानी गर्म है। लेकिन उचित प्रचार और प्रसार न होने से प्रकृति का ये अनमोल नेमत आज भी देश -दुनिया की नजरों से दूर है।
चिनाप फूलों की घाटीः देश और दुनिया की नजरों से दूर फूलों की यह जन्नत है। जोशीमठ ब्लाक की उर्गम घाटी, थैंग घाटी व खीरों घाटी के मध्य हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों की तलहटी में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर 300 से अधिक प्रजाति के फूल बेपनाह सुन्दरता और खुशबू बिखेरते हैं। इस घाटी की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहां पर फूलों की सैकड़ों क्यारियां हैं। यह लगभग पांच वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली हैं। हर क्यारी में दो सौ से लेकर तीन सौ प्रकार के प्रजाति के फूल खिलतें हैं। इनको देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है की इन कतारनुमा फूलों की क्यारियों को खुद कुदरत ने अपने हाथों से फुरसत में बड़े सलीके से बनाया है।
सुनो सरकार: प्रकृति प्रेमी, अधिवक्ता और गांव के युवा दिलबर सिंह फरस्वाण कहतें हैं कि चेनाप फूलों की घाटी को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए ग्रामीण कई बार जनप्रतिनिधियों से लेकर जिले के आलाधिकारियों से मांग कर चुके हैं। नतीजा सिफर रहा। यदि चिनाप फूलों की घाटी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाता है तो आने वाले सालों में उत्तराखंड में सबसे अधिक पर्यटक यहां का रुख करेंगे।