चंपावत जिले का खतेड़ा गांधी के चरखे को लेकर चर्चा में

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चंपावत
चंपावत जिले के खेतीखान के परध्यानी गांव का खतेड़ा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कथित चरखा को लेकर सुर्खियों में है। पुरातत्व अधिकारी (अल्मोड़ा) सीएस चौहान ने कहा है इस चरखे का जल्द ही निरीक्षण किया जाएगा। यदि वह वास्तव में वह गांधी जी का चरखा होगा तो उसका संरक्षण किया जाएगा।
यह चरखा यहां के पौराणिक पारम्बा पराशक्ति देवी भगवती मंदिर के ध्यान कक्ष में रखा गया है। इस मंदिर में रक्षाबंधन के दिन विशाल मेला लगता है। मान्यता है कि देव गद्दी पर देवी भगवती साक्षात विराजमान होकर लोगों के कष्ट हरती हैं। अब से पहले यह चरखा मंदिर के गर्भ गृह के भाड़ में रखा था। हिमांशु परध्यानी, अमित परध्यानी, नीरज परध्यानी और दीपक परध्यानी ने नवरात्र में मंदिर की सफाई के दौरान चरखे को ध्यान कक्ष में रखा है। यह जानकारी मंदिर पहुंचे  लड़ीधुरा शैक्षिक एवं सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष नागेंद्र जोशी ने दी। उन्होंने मंदिर के पंडित जगदीश चंद्र परध्यानी के हवाले से कहा है कि यह चरखा गांधी जी का है। गांधी जी ने ही परध्यानी के पुरखों को भेंट किया था।
जोशी का कहना है कि इतिहास में गांधी के इस क्षेत्र में भ्रमण करने का वर्णन नहीं है। मगर यहां के तमाम लोगों का कहना है कि उन्होंने चरखे के बारे में सुना तो है परंतु देखा नहीं है। लेकिन कुछ बुजुर्गों का कहना है कि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दिनों से इस मंदिर में चरखा होने की बात पता है। परंतु यह चरखा कहां से आया, कौन लाया, किस उद्देश्य से लाया गया और मंदिर में किस लिए रखा गया, यह नहीं पता।
बुजुर्ग जगराज सिंह देउपा कहते हैं कि हो सकता है महात्मा गांधी ने अल्मोड़ा के कौसानी में अनासक्ति आश्रम में प्रवास के दौरान पर्वतीय अंचल में चरखे के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को और धारदार बनाने के उद्देश्य से किसी क्षेत्रीय स्वतंत्रता सेनानी को दिया हो।
इस बारे में ओली गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित हर्षदेव ओली के सहयोगी रहे ​शिक्षाविद् सीएल वर्मा का कहना है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हर्षदेव ओली महात्मा गांधी के संपर्क में आए। पंडित ओली इंडिपेंडेंट समाचार पत्र के सम्पादक थे। असहयोग आंदोलन और विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के दौरान 1921 में गांधी जी ने ओली के पास टेलीग्राम भेजा। इसमें स्वदेशी को बढ़ाने, स्वदेशी अपनाने और लिखने के लिए कहा। वर्मा के अनुसार गांधी की प्रेरणा के बाद पंडित ओली ने 1923 से 1930 तक स्वदेशी का प्रचार किया। इस बीच  खेतीखान में चरखा लाकर ओढ़ने वाली पंखियां, चादर, कालीन आदि बनाए जाते रहे। 1940 में पंडित ओली के निधन के बाद इस चरखे को चलाने का कार्य अल्मोड़ा से आई स्वदेशी टीम ने संभाला। इसके बाद चरखे को परध्यानी गांव के खतेड़ा में मां भगवती मंदिर में रख दिया गया।