जाने चन्द्रशेखर आजाद का गढ़वाल था गहरा नाता

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दुगड्डा/गढ़वाल, देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल का द्वार कहे जाने वाले कोटद्वार दुगड्डा से शहीद चंद्रशेखर आजाद का गहरा नाता था। अपने साथियों के समक्ष आजाद ने अचूक निशानेबाजी का प्रमाण दिया था।

नाथूपुर (दुगड्डा) निवासी क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत के आग्रह पर वर्ष 1930 में चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों रामचंद्र, हजारीलाल, छैल बिहारी व विशंभर दयाल के साथ दुगड्डा आए थे। लैंसडौन वन प्रभाग की दुगड्डा रेंज के अंतर्गत साझासैंण के समीप के जंगल में शस्त्र प्रशिक्षण के दौरान आजाद ने साथियों के आग्रह पर वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साधकर अपनी पिस्टल से फायर किए। छह फायर हुए, लेकिन पत्ता हिला तक नहीं। साथी समझते रहे कि निशाना चूक गया, लेकिन जब वे पेड़ के पास पहुंचे तो देखा कि गोलियां पत्ते को भेदती हुईं पेड़ के तने में जा धंसी थीं। पेड़ के इस टूटे हिस्से को ‘आजाद पार्क’ में बने शेड में रखा गया है। दुगड्डा-सेंधीखाल मार्ग पर पड़ने वाला यह पार्क आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से जुड़ा है।

लैंसडौन वन प्रभाग के आरक्षित वन क्षेत्र में पड़ने के कारण इस पार्क के विकास में वन विभाग के कायदे कानूनों की जटिलता सामने आती रही है, लेकिन अब खुद वन विभाग ने इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य अपने हाथ में लिया है। पार्क की सफाई के साथ ही इसके सौंदर्यीकरण का कार्य शुरू किया गया है। वन विभाग ने पार्क में पेंटिंग कर इसे और अधिक आकर्षक बना दिया है। विभाग की ओर से इस पार्क में आजाद की दुगड्डा यात्रा का पूर्ण वृत्तांत लिखने के साथ ही आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा जा रहा है।

विभाग यहां पर शहीद चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा भी स्थापित करेगा। लैंसडौन के डीएफओ वैभव सिंह ने बताया कि, “पार्क के भीतर शहीद चंद्रशेखर आजाद की गढ़वाल यात्रा का एक मात्र प्रमुख साक्षी आजाद स्मृति वृक्ष के संरक्षण की योजना भी बनाई गई है। आजाद के सहयोगी रहे क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत की समाधि को भी नया स्वरूप दिया जा रहा है ताकि यह स्थान भावी पीढ़ी के लिए प्ररेणास्रोत बन सके।”