(ऋषिकेश)पूर्व मुख्यमंत्री और मानव संसाधन मंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल निशंक शनिवार को बिना किसी लाव लश्कर के जौली ग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे और यहां से देहरादून के लिए प्राइवेट टैक्सी में रवाना हुए। निशंक के इस प्रोटोकॉल विहीन दौरे को आलाकमान की हरीझंडी माना जा रहा है, जिससे उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को हवा मिलनी शुरू हो गई है।
उत्तराखण्ड मे नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुहाहट शुरू हो गई है। पिछले नौ महीनों में एक के बाद एक राज्यों मे करारी हार के बाद भाजपा नेतृत्व को अब एहसास होने लगा है कि मोदी के नाम पर राज्यों में चुनाव नहीं जीता जा सकता। राज्यों की परिस्थितियां केन्द्र की राजनीति से भिन्न होती हैं, इसलिये पार्टी ने राज्यों मे ऐसे दमदार और ज़मीनी नेताओं की खोज शुरू कर दी है, जो अपने बूते पर पार्टी को सत्ता में ला सके। दिल्ली चुनाव हारने के बाद पार्टी की नज़र उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश पर टिकी है,जहाँ 2022 में चुनाव होना है। उत्तर प्रदेश के नेतृत्व परिवर्तन को लेकर संघ और मोदी के बीच कशमकश जारी है और वहाँ के बारे में क्या फ़ैसला लिया जाता है यह आरएसएस के उन शीर्ष मठाधीशों पर निर्भर करता है जो अब भी योगी के साथ हैं।
लेकिन उत्तराखण्ड में नेतृत्व परिवर्तन पर सहमति हो गई है और अगले कुछ दिनों में इसका औपचारिक ऐलान कर दिया जायेगा। सूत्रों के मुताबिक़ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पद के लिये मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और आध्यात्मिक नेता और उत्तराखण्ड के पर्यटक मंत्री सतपाल महाराज का नाम लिया जा रहा है। सूत्र ये भी बताते हैं कि निशंक और महाराज के बीच सहमति हो गई है और निशंक ने अपना दावा छोड़कर महाराज का नाम मुख्यमंत्री पद के लिये आगे कर दिया है।
बहरहाल दिल्ली चुनावों में हार के बाद क्या पार्टी के लिये उत्तराखंड में नेतॉतव परिवर्तन रास्ता है औऱ इसका कितना फायदा बीजेपी को आने वाले चुनावों में मिलता है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आने वाले समय में ही मिल सकता है।