बाल सुरक्षा: बच्चों को पता हो सही गलत का फर्क

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    बीते दिनों में घटित घटनाओं ने स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। ऐसी घटनाओं से बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें अलर्ट रखना बेहद जरूरी हो गया है। सुरक्षा के नजिरए से यह बेहद जरूरी है कि बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बीच का अंतर मालूम हो।

    कुछ रोज पहले रायन इंटरनेशनल स्‍कूल में हुई एक बच्‍चे की हत्‍या ने पूरे देश के अभिभावकों को चिंता में डाल दिया। आपका बच्‍चा जिस स्‍कूल में पढ़ने जा रहा है, वहां कितनी सुरक्षा है। इसको लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। सीबीएसई ने स्‍कूल-कालेजों में छात्रों की सुरक्षा को लेकर गाइडलाइन तैयार की है, जिसे हर अभिभावक को जानना बेहद जरूरी है। दरअसल बच्चों से जुड़ी यौन शोषण की बात हो या फिर उत्पीड़न की। ऐसे मामलों में सबसे पहला कारण होता है कि बच्चों को ये मालूम ही नहीं होता कि उन्हें किस तरह से छुआ जा रहा है। ऐसे में परिवार के सदस्यों के लिए जरूरी है कि घर के बच्चों को ये सिखाया जाए कि किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा छूने पर ही इस बात का पता चल जाए कि ये गुड टच है या बैड टच।

    सबसे पहले सिखाएं, किस पर यकीन करें और किस पर नहीं:
    सीबीएसई की स्टूडेंट काउंसलर व न्यूरो साइक्लॉजिस्ट डात्र सोना कौशल गुप्ता के मुताबिक अभिभावकों को कम से कम 4 साल की उम्र से यह बात समझाना शुरू कर देना चाहिए कि वे किस पर यकीन करें और किस पर नहीं। अगर कोई उसकी जान पहचान का नहीं है तो किसी के साथ नहीं जाना चाहिए। अनजान व्यक्ति से उसे कुछ भी खाने की चीज नहीं लेनी चाहिए। इसके अलावा बच्चों से खुलकर बात करना बेहद जरूरी है। बच्चे को कभी भी ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वह कुछ कहेगा तो उसे डांट पड़ सकती है या उसकी बात अनसुनी कर दी जाएगी।

    आराम से समझाएं सारी बातें:
    सीनियर क्लीनिकल चाइल्ड साइक्लॉजिस्ट डा. मुकुल शर्मा का कहना है कि बच्चे से जुड़ा यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है, इसलिए इस बारे में बच्चे को बहुत धैर्य और आराम से जानकारी दें। कई बार बच्चों के लिए ये बातें समझना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि बच्चे को ऐसी बातें समझने में समय लगता है। उसे प्राइवेट पार्ट्स के बारे में बताएं और समझाएं कि उसे इस जगह पर उसके अलावा कोई दूसरा नहीं छू सकता है। इसके अलावा कई बार लोग गोद लेने और चूमने का प्रयास करते हैं। परिवार इसे नजरअंदाज कर देता है। लेकिन ऐसी स्थिति में बच्चों को ये बताना बहुत जरूरी है कि अगर कोई आपको चूूमने या गोद में बैठाने की कोशिश कर रहा है तो इसकी शिकायत अभिभावकों से जरूर करें।
    बच्चे को दिलाएं अपने साथ होने का भरोसा:

    ऐसे मामलों में बसेस ज्यादा जरूरी है कि बच्चों को अपने माता पिता पर भरोसा हो। अगर उसे कुछ भी गंदा लग रहा हो तो वो अपने माता-पिता को तुरंत बता दे। हर छोटी से छोटी बात मां बाप के साथ साझा करे। दून इंटरनेशनल स्कूल के उप—प्रधानाचार्य दिनेश बड़थ्वाल ने बताया कि कई लोग मानसिक रोगी होते है और बच्चो तक के साथ दुष्कर्म करने से पीछे नहीं हटते। ऐसे में बच्चे को यह जरूर पता होना चाहिए कि गुड टच और बैड टच में क्या फर्क है ताकि मासूम बच्चे किसी की गलत भावनाओं का शिकार न होने पाएं। ऐसी वारदातों से बचाने के लिए इस बारे में सही से शिक्षा दी जाएं।

    सीबीएसई ने बनाए हैं नियम:
    सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने स्‍कूलों में बच्‍चों की सुरक्षा को लेकर एक गाइडलाइन तैयार की है। सीबीएसई ने असे अपनी वेबसाइट पर भी अपलोड किया है। इसमें सिर्फ उनकी देखरेख के बारे में ही नहीं बल्‍िक, शारीरिक और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर भी ध्‍यान रखा गया है। यानी कि स्‍कूल परिसर के अंदर आपके बच्‍चे की सुरक्षा की पूरी जिम्‍मेदारी स्‍कूल प्रशासन की होती है। पांच हिस्सों में बंटी गाइडलाइन में बोर्ड ने न सिर्फ स्कूलों बल्कि अभिभावकों की जिम्मेदारी भी निर्धारित कर रखी है। बोर्ड गाइडलाइन में फिजिकल सेफ्टी सबसे अहम मानी गई है। इसके अलावा इमोशनल सेफ्टी, सोशल सेफ्टी, हैंडल डिजास्‍टर और साइबर सेफ्टी आदि को लेकर भी दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।

    हर स्कूल में दिखाई जा रही फिल्में:
    विशेषज्ञों की मानें तो छूने भर से ही यह पता चल जाता है कि वह अच्छा स्पर्श है या फिर बुरा। ऐसे में इसके लिए स्कूली स्तर पर इसके लिए जागरुकता लाना बेहतद अहम है। इसी को देखते हुए सीबीएसई से जुड़े स्कूलों में बीते कुछ वक्त से निरंतर बच्चों को यूट्यूब के माध्यम से गुड टच व बैड टच को लेकर शॉर्ट फिल्मों का दिखाया जा रहा है। ताकि बच्चोें को स्पर्श के दौरान मानसिकता का आभास हो सके।

    यह हैं बोर्ड की गाइडलाइन:

    • स्‍कूल के अंदर आने-जाने वाले लोगों पर नजर रखना।
    • स्‍कूल परिसर में किसी भी तरह की गुप्‍त या छुपी हुई जगह नहीं होनी चाहिए।
    • स्‍कूल में काम करने वाले हर एक व्‍यक्‍ित (टीचर, प्रिंसिपल, चपरासी, अकाउंटेंट, या अन्‍य) के बैकग्राउंड के बारे में पता करने के बाद उन्‍हें काम पर रखना।
    • स्‍कूल परिसर में एक डॉक्‍टर या नर्स की तैनाती होना अनिवार्य।
    • स्‍कूल परिसर से 2 किमी की दूरी पर जो भी हॉस्‍पिटल होगा, उसके साथ टाई अप करना जरूरी।
    • स्‍कूल प्रशासन को चाइल्‍ड प्रोटेक्‍शन पॉलिसी को फॉलो करना जरूरी है। यानी कि बच्‍चे के साथ किसी भी तरह का टॉर्चर, मारपीट या शारीरिक शोषण नहीं किया जा सकता।