उत्तराखंड में भाजपा की सरकार जरुर है, लेकिन कार्यकर्ता अब भी संतुष्ट नहीं है। इसका कारण उनको उच्च स्तर पर सम्मान न मिल पाना है। दर्जनों वरिष्ठ कार्यकर्ता ऐसे हैं, जो अपने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए भी निरंतर प्रयास कर रहे हैं पर उन्हें मिलने तक का मौका नहीं मिल पा रहा है।
चार मंत्रियों की कांग्रेसी पृष्ठभूमि होने के कारण उन तक कार्यकर्ताओं की पहुंच नहीं है, जिसके कारण समस्या और गहरा रही है। केवल डॉ. धन सिंह रावत, प्रकाश पंत, अरविंद पाण्डेय और मदन कौशिक को छोड़ दिया जाए तो सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल, डॉ. हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य और रेखा आर्य जैसे मंत्रियों से भाजपा के कार्यकर्ता कम, कांग्रेस से भाजपा में आये ज्यादा कार्यकर्ता मिल रहे हैं, इसका कारण उनका सीधा संपर्क और संबंध होना है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत संघ पृष्ठभूमि के हैं और हर कार्यकर्ता उन्हें अपना मानता है, लेकिन उनके आसपास की नौकरशाही उन्हें मिलाने में कोताही बरत रही है, जिसके कारण अब कार्यकर्ताओं में अब निराशा आने लगी है। महज सवा सौ दिनों में ही आने वाली यह निराशा शायद पार्टी के लिए बहुत उपयुक्त न हो। प्रचंड बहुमत के लिए भाजपा कार्यकर्ता जितने उत्साहित थे उतने बड़े नेता भी नहीं थे। इसका कारण कार्यकर्ता प्रदेश में कांग्रेस सरकार को बदलकर भाजपा की सरकार चाहते थे।
प्रचंड मोदी लहर के चलते प्रदेश में भाजपा ने 70 में से 57 विधानसभा क्षेत्रों में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की। पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि सत्ता में आने पर उनके भी अच्छे दिन आएंगे। त्रिवेंद्र सरकार को लेकर असंतोष के स्वर कार्यकर्ताओं के स्तर से फूट रहे हों, ऐसा नहीं है। वरिष्ठ मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत खुलेआम सार्वजनिक मंच से मुख्यमंत्री की क्षमताओं पर सवाल खड़े कर चुके हैं। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज से तनातनी की खबरें भी चर्चाओं में रहती हैं। कार्यकर्ताओं ने सरकार बनाने के लिए जी जान लगाई और जब सरकार बन गई तो कार्यकर्ताओं को दूध की मक्खी की तरह बाहर निकाल ऐसे लोगों को जोड़ा जा रहा है, जो संगठन के थे ही नहीं। सरकार में मंत्रिमंडल में रिक्त पड़े दो पदों का मामला हो या विभिन्न निगमों, बोर्डों में चेयरमैन का, कार्यकर्ता इन पदों को जल्दी भरना चाहते हैं।
कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर आक्रोश बढ़ रहा है कि मुख्यमंत्री अपने करीबी लोगों को किसी न किसी तरह एडजस्ट कर रहे हैं, किंतु पार्टी कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने के लिए सुस्ती बरती जा रही है। मंत्री पद के दावेदार विधायकों द्वारा गाहे-बगाहे अपनी नाराजगी भी विभिन्न स्तरों पर व्यक्त की जा रही है। विधायकों का मानना है कि मुख्यमंत्री जिसको मर्जी मंत्री बनाएं किंतु निर्णय जल्दी करें क्योंकि असमंजस की स्थिति किसी के लिए भी अच्छी नहीं है।