चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों का मुकाबला प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के उम्मीदवारों से होता है, लेकिन वैचारिक तौर पर लगातार हो रही कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए मुकाबला अपनों से अधिक होता जा रहा है।
खासकर इस बार जहां पार्टी और उसके उम्मीदवारों को लगता है कि उत्तराखंड में विपक्षी होने के नाते पिछले पांच वर्षों में जितनी मेहनत उन्हें करनी चाहिए थी, वह उन्होंने नहीं की, बल्कि कुछ दावेदार तो पिछले करीब पौने पांच साल अपने क्षेत्र से भी गायब रहने के बाद इधर करीब एक माह में ही सामने आए हैं और उन्हें लगता है कि वे ही सबसे बड़े उम्मीदवार हैं और पहले तो वह किसी अन्य को टिकट लेने नहीं देंगे और मिल भी गया तो वह उम्मीदवार को खुद से आगे बढ़ने नहीं देंगे।
कांग्रेस के लिए यह स्थिति कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी से लेकर जनपद की कमोवेश सभी सीटों पर है। हल्द्वानी में जहां सुमित हृदयेश अपनी मां स्वर्गीय डॉ. इंदिरा हृदयेश की विरासत के स्वाभाविक दावेदार हैं वहीं दीपक बल्यूटिया डॉ. इंदिरा इंदिरा के साथ राज्य गठन के बाद से ही पीसीसी अध्यक्ष पद व मुख्यमंत्री पद के लिए अदावत रखने वाले हरीश रावत के भरोसे टिकट की उम्मीद में हैं।
व्यापारी नेता हुकुम सिंह कुंवर एवं राज्य आंदोलनकारी ललित जोशी भी खुद को सबसे सशक्त दावेदार मानते हैं। यहां सुमित को हल्द्वानी की जगह लालकुआं से लड़ाकर राजनीतिक कॅरियर खत्म करने की चर्चाओं के बीच यह भी है कि यदि टिकट मिलने पर सुमित चुनाव जीत जाते हैं तो वह लंबे समय तक हल्द्वानी में जम सकते हैं। सुमित को नगर निगम के चुनाव में विरोधी अपनी ताकत का अहसास भी करा चुके हैं। इसकी उल्टी स्थिति सुमित की जगह किसी और को टिकट मिलने पर भी हो सकती है।
ऐसी ही स्थिति कालाढुंगी में है। यहां पिछले दो चुनावों में बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद कांग्रेस पूरे पांच वर्ष गायब रहे प्रकाश जोशी को टिकट देती है तो चुनाव तीसरी बार दोहरा सकता है, और यदि शर्मा को टिकट मिलता है तो जोशी के लिए पिछले दो चुनावों की हार का बदला लेने का मौका होगा। लालकुआं सीट पर भी यही स्थिति है। यहां कांग्रेस नेता हरीश दुर्गापाल 2012 में निर्दलीय लड़कर कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र बोरा को हराकर चुनाव जीते और कांग्रेस सरकार में मंत्री बने और वापस कांग्रेस में शामिल हो गए। 2017 में उन्हें कांग्रेस से टिकट मिला तो हरेंद्र बोरा ने निर्दलीय लड़कर और उन्हें हराकर बदला चुकाया। अब इस चुनाव में कौन-किससे कौन सा बदला लेगा यह, यह चुनाव बताएगा।
जनपद की रामनगर सीट पर संजय नेगी स्थानीय व स्वाभाविक उम्मीदवार हैं, परंतु पिछले चुनाव में भितरघात से हार चुके कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत को टिकट मिलने की अधिक चर्चा है। ऐसे में फिर यहां भितरघात के साथ कांग्रेस को हार का परिणाम दोहराया जाए तो आश्चर्य न होगा। नैनीताल सीट का भी इतिहास रहा है कि यहां 2007 में भाजपा प्रत्याशी खड़क सिंह बोहरा कांग्रेस के बागी डॉ. हरीश बिष्ट के एनसीपी के लड़ने से बने त्रिकोणीय संघर्ष के बाद 400 से कम वोटों से जीते थे। पिछली बार कांग्रेस से भाजपा में आए संजीव आर्य ने कांग्रेस की तत्कालीन विधायक सरिता आर्य से यह सीट छीनी। अब संजीव कांग्रेस में ‘घर वापसी’ कर चुके हैं तो उसी दिन से ‘मलाई खाने’ जैसे बयान दिल को गहरे चुभोने वाले एक दावेदार हेम आर्य जहां कांग्रेस को कमजोर कर भाजपा में आ चुके हैं। अलबत्ता, सरिता के सुर फिलहाल जरूर नरम पड़ गए हैं। वहीं भीमताल सीट पर जहां पिछले 2012 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार दान सिंह भंडारी कांग्रेस के बागी निर्दलीय राम सिंह कैड़ा की वजह से तीसरे नंबर पर ऐसे धकेल दिए गए, कि अब तक यहां कांग्रेस मुकाबले में नजर नहीं आ रही है।