कांग्रेस अगर उन्हें मुख्यमंत्री बनाती तो ‘इंदिरा’ ही होतीं ह्रदयेश

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इंदिरा
यह 18 जुलाई 2018 का वाकया है। मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी तो लाइन पर डाॅ. इंदिरा हृदयेश के पीआरओ थे। मुझे बताया कि मैडम बात करना चाहती हैं। अगले पल लाइन पर डाॅ. इंदिरा हृदयेश थीं। आज के दिन तब उत्तराखंड के प्रमुख अखबार में कांग्रेस के समीकरणों पर हरीश का कद बढ़ाया, तो प्रीतम को दी राहत शीर्षक से मेरी स्टोरी छपी थी। मैं सोचने लगा कि कांग्रेस में नई जिम्मेदारियों के बंटवारे के बीच अपनी स्टोरी में जिस तरह से मैंने पार्टी की खींचतान को सामने रखा है, उसमें कहीं न कहीं संतुलन जरूर बिगड़ गया होगा, तभी डाॅ. इंदिरा हृदयेश दूर हल्द्वानी से सुबह-सवेरे फोन कर रही हैं। मगर उन्होंने मुझे गलत ठहरा दिया। उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों में पहली बार मैंने एक संतुलित राजनीतिक विश्लेषण पढ़ा है इसलिए बधाई देने के लिए फोन कर रही हूं।
– गजब की प्रखरता और प्रशासनिक क्षमता से हासिल किया मुकाम
– एनडी राज में सुपर सीएम के तौर पर बनी थी इंदिरा की पहचान
एनडी तिवारी सरकार में माना जाता था कि डाॅ इंदिरा हृदयेश सुपर सीएम हैं। उनके रसूख का यह आलम था कि पीडब्ल्यूडी और सूचना एवं लोक संपर्क जैसे अहम विभाग उन्हें दिए गए थे। तब से आज तक मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी सरकार में यह दो विभाग सीएम से हटकर किसी मंत्री के पास रहे हों। विजय बहुगुणा और हरीश रावत सरकार में उनकी हैसियत एनडी तिवारी राज की तरह तो नहीं थी, लेकिन वित्त जैसे बेहद महत्वपूर्ण विभाग को उन्होंने बड़ी कुशलता से संभाला। संसदीय कार्यमंत्री के लिए तो हर बार कांग्रेस की सरकार आने पर उनसे बेहतर विकल्प पार्टी के पास कभी रहा ही नहीं।
उत्तराखंड विधानसभा के सत्र के दौरान चाहे वह सत्ता पक्ष में रहीं हो या फिर विपक्ष में, उन्हें सुनना हर किसी को अच्छा लगता था। वह बेहद तार्किक बोलती थीं और कई वर्षों का संसदीय अनुभव उनके संबोधन में हर पल परिलक्षित होता था। जिन लोगों ने उन्हें उत्तर प्रदेश के जमाने में विधान परिषद में बोलते हुए सुना था, उनकी स्मृतियों में उनकी प्रभावशाली अभिव्यक्ति हमेशा ताजी रही।
डॉ. इंदिरा हृदयेश की छवि एक तेजतर्रार और बेबाक महिला नेत्री की रही। इसलिए चाहे विपक्ष के नेता रहे हों या फिर खुद उनकी पार्टी के ही लोग, इंदिरा हृदयेश जब प्रहार करने पर आती थीं, तो फिर किसी के लिए नरमी की कोई गुंजाइश नहीं रहती थी। मुझे अपनी स्टोरी पर डाॅ इंदिरा हृदयेश की प्रतिक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण लगी, क्योंकि मैने कभी उन्हें अपने पक्ष में खबरें छपवाने के लिए जरा सी मेहनत करते हुए भी कभी नहीं पाया था। वह मीडिया में गलत खबर छपने पर शिकायत करने में भी जरा नहीं चूकती थीं।
खराब स्वास्थ्य उनके राजनीतिक कैरियर में अब रुकावट बनने लगा था। गैरसैण में विधानसभा स़त्र के दौरान मैंने कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना करते हुए देखा था। मगर फिर भी अपनी ताकत बटोरकर वह सियासत के मैदान में चले जा रहीं थीं। उनके निधन ने उत्तराखंड में पहले से कमजोर कांग्रेस के लिए और मुश्किलें बढ़ा दी हैं। लगभग सभी राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि पूर्व में कांग्रेस हाईकमान ने किसी महिला नेत्री को सरकार बनने की स्थिति में कमान सौंपने का मन बनाया होता, तो वह बेहिचक डाॅ इंदिरा हृदयेश ही होतीं। खराब स्वास्थ्य के बावजूद वह आने वाले समय में भी सीएम पद के लिए मजबूत संभावना के साथ मौजूद रहतीं।
वह कांग्रेस के लिए कितनी जरूरी थीं, इसकी बानगी 2018 में उस समय भी देखने को मिलती है जबकि राज्य में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार का गठन हो गया। नेता प्रतिपक्ष के लिए कांग्रेस में लांबिंग चल रही थी, लेकिन बाद में इंदिरा के ही नाम पर मुहर लगी। भाजपा सरकारों की घेराबंदी के लिए होने वाले किसी कार्यक्रम में उनकी मौजूदा समय तक भी गैरहाजिरी नहीं लगी थी। खराब स्वास्थ्य के बावजूद उनकी सियासी सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में जहां उन्होंने अंतिम सांस ली, वहां भी उनका जाना पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक के सिलसिले में हुआ था।