ओएनजीसी में इंजिनियर के पद पर काम करने वाले 32 साल को प्रकाश चंद ने अपने नये मिशन को अपना सब कुछ दे दिया है।
पिथौरागड़ में पंचाचुली पर्वतों पर इन दिनों ट्रैनिंग में लगे हुए हैं। हिमालय की इन ऊंचाईयों पर, -10 डिग्री तापमान में चल रही प्रकाश की यह ट्रैनिंग और चुनौतीपूर्ण इसलिये हो जाती है क्योंकि प्रकाश नेत्रहीन हैं।
नेत्रहीन होना प्रकाश को अभी तक पैरा ग्लाइडिंग और पैरा सैलिंग करने से दूर नहीं रख सका है, तो पर्वतारोहण प्रकाश को कैसे चुनौती दे सकता था?
पर्वतारोहण के अपने सपने को साकार करने के लिये किसी ऑपरेटर की तलाश करना प्रकाश के लिये काफी मुश्किल रहा। सालों तक उन्हें कई जगहों से न सुनने की आदत सी पड़ गई थी। आखिरकार प्रकाश ने योगेश गबर्रियाल औऱ शीतल को चुना। यो दोनों पिछले कुछ समय से डरमा औऱ व्यास घाटी को पर्वतारोहण प्रशिक्षण का केंद्र बनाने की तरफ काम कर रहे हैं।
इन दोनों ने प्रकाश को अपने दल में शामिल किया। प्रकाश के पास 10 दिनों का अनुभव था, जिसमे पर्वतारोहण के उपकरणों का इस्तेमाल, -10 डिग्र तापमान में 10-15 किलो वजन उठाना, चढ़ाई, बर्फीली ऊंचाईयों पर 7-8 घंटे की ट्रेक करना शामिल था। अपने छात्र के बारे में योगेश कहते हैं कि “प्रकाश चीजों को जल्दी सीखता है। उसने पर्वतारोहण के उपकरणों का प्रयोग करना तीन दिन में सीख लिया, जो किसी चमत्कार से कम नही है।”
अपने प्रशिक्षकों के बारे में प्रकाश कहते हैं कि “मुझे पर्फेक्ट जोड़ी मिली है, जहां योगेश अनुभवी और परिपक्व है, वहीं शीतल सख्त हैं, लेकिन वो आपको अपने लक्ष्य को पाने के लिये उत्साहित करती हैं। मुझे इन दोनों से बहुत कुछ सीखने को मिला है और आगे भी मिलता रहेगा।”
अगले दो सालों के लिये प्रकाश का कार्यक्रम तय है। बहु क्षेत्रीय प्रशिक्षण के जरिये ये तय किया जायेगा कि उनका शरीर ऊंचाईयों पर कैसे रिस्पॉंड करता है। इसके लिये शारीरिक औऱ मानसिक, दोनों पहलुओं का इम्तिहान होगा।
प्रकाश को उम्मीद है कि भारतीय पर्वतारोहण संघ और नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग, उनके लिये अपवाद लेते हुए उनके प्रशिक्षण को आगे ले जायेंगे।
किसी अन्य पर्वतारोही की तरह, प्रकाश का भी सपना है कि वो 2022 तक माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा सकें।