आम दिनों में फ़रवरी महीने के अंत से ही रात में राज्य के पहाड़ों पर जंगलों में लगी आग के नज़ारे आम बात हो जाती है। और दोपहर के समय आसमान में धुएँ के बादल उठते देखे जा सकते हैं। यह सब हमें साफ़ करती थी कि हमारे जंगलों का एक बड़ा हिस्सा आग के हवाले हो रहा है। गर्म मौसम, तेज़ गर्म हवाऐं, और चढ़ता पारा इस आग में घी का काम करता है।
लेकिन इस साल कहानी कुछ अलग रही है। आज की तरीख तक, राज्य में महज़ 10 हेक्टेयर जंगल में आग की घटनाओं सामने आई हैं और इससे राज्य को क़रीब 24 हज़ार रुपये का नुक़सान हुआ है। उत्तराखंड के पीसीसीएफ़, जयराज ने न्यूजपोस्ट को बताया कि, “अगर हम पिछले सालो को देखकर बात करें तो यह आँकड़ा हज़ारों एकड़ का होता। मौसम और कोरोना लॉकडाउन ने जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं को कापी क़ाबू में रखा है और पर्यावरण को राहत दी है। इसमें 75-80% श्रेय मौसम को जाता है, हमारे यहाँ क़रीब क़रीब हर हफ़्ता बारिश हुई है। बाक़ी का श्रेय आप कोरोना लॉकडाउन को दे सकते हैं, क्योंकि पहाड़ों पर होने वाली जंगलों में आग की ज़्यादातर घटनाओं मानव निर्मित होती हैं।”
जयराज आश्वस्त करते हुए कहते हैं कि, “हालात बेहतर हैं और क़ाबू में हैं। हमने फ़ायर लाइन जगह पर बना दी हैं और अगर मौसम इस तरह रहा तो चिंता की कोई बात नहीं होगी।”
उत्तराखंड के 3,400 वर्ग किमी के जंगलों के लिये आग हमेशा से ही परेशानी और ख़तरे का सबब रही है। कोरोना और उसके बाद हुए लॉकाउन ने पानी की स्रोतों और जानवरों को जीवन की नई उमंग दी है। वहीं, हमारे जंगलों को भी इस बार सालाना होने वाली “आग से मौत” के बचाव मिला है।