प्लास्टिक से एलपीजी बनाने वाले पिथौरागढ़ के दीपक को मिलेगा राष्ट्रपति पुरस्कार

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उत्तराखंड के बेटों और बेटियों ने सभी स्तरों पर अपने हुनर का जलवा बिखेरा है। इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है डाॅक्टर दीपक पंत का। डाॅक्टर दीपक पंत ने विश्व के पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके प्लास्टिक का इस्तेमाल कर एलपीजी (गैस) तैयार किया है। उनके इस आविष्कार के लिए उन्हें विजिटर-2017 के राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इस पुरस्कार में एक लाख रुपये और एक ट्राॅफी दी जाती है।

आपको बता दें कि डाॅक्टर पंत मूल रूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं और फिलहाल हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित केंद्रीय विवि में पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं डीन हैं। डाॅक्टर दीपक पंत ने इसे प्लास्टिक के कचरे को एलपीजी में बदलने में कामयाबी मिली है। प्लास्टिक के कचरे से एलपीजी बनाने के तरीके का आविष्कार करने के चलते उन्हें विजिटर-2017 का राष्ट्रपति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है।

गौरतलब है कि प्लास्टिक आज हमारे दिनचर्या में इस तरह शामिल हो गया है कि हम चाहकर भी इससे पीछा नहीं छुड़ा पा रहे और नतीजन बिना जाने हम बहुत सी बीमारियों को न्यौता दे रहे। इसके बचने के लिए कोई उपाय न होने से यह पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है।आपको बता दें कि एक आम इंसान रोजाना 120 ग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है जिससे 100 ग्राम एलपीजी बनाया जा सकता है। डॉ. पंत को विज्ञान एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए अभी तक 20 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। उनकी 10 किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है।

प्लास्टिक कचरे के निपटारे के लिए आमतौर पर ठोस एसिड उत्प्रेरक विधि का प्रयोग किया जाता है। डॉ. पंत ने आरंभिक प्रयोगों में ठोस एसिड के स्थान पर एलुमिनिया की तरह कुछ अक्रिय मृदा पदार्थ एवं द्रव एसिड का प्रयोग किया। इसके बाद बेकार प्लास्टिक को 125-130 डिग्री सेल्सियस तापमान पर उबालने पर तेल प्राप्त हुआ। इस प्रक्रिया में संशोधन कर एलपीजी तैयार किया गया।