वायु प्रदूषण में देहरादून की हवा नोएडा, कानपुर आदि शहरों से भी जानलेवा

0
1048
यातायात

दिल्ली और आस पास के इलाकों में हो रहे प्रदूषण से बचने के लिये जो लोग देहरादून की वादियों का रुख करने की तैयारी में थे उनके लिये बुरी खबर है। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने 273 शहरों के प्रदूषण स्तर पर ताज़ा आंकड़े जारी किये हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक देहरादून की हवा की हालत खराब हो रही है औऱ हवा में प्रदूषण के कंणों के मामले में देहरादूून की हवा – नोएडा, कानपुर औऱ गाजियाबाद से भी खराब है।

इसके साथ साथ योगनगरी ऋषिकेश में भी प्रदूषण का स्तर मुंबई के जितना खराब है।इस बारे में जानकारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने संसद में एक प्रशन के जवाब में दी। इस सावल में मंत्रालय से राज्यभर से प्रदूषण के स्तरों का डाटा मांगा गया था। इन आंकड़ों को जमा करने के लिये तीन बातों का ध्यान रखा गया SO2, NO2 और PM10 के स्तरों का।

apartments

देहरादून की बात करें तो यहां का PM10 स्तर 241 रहा जो गीजियाबाद(235), नोएडा(176) और मुरादाबाद(196) जैसे शहरों से भी ज्यादा है। उत्तराखंड में प्रदूषण को लेकर ये चौंकाने वाले आंकड़े केवल देहरादून तक सीमित नही हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश में PM10 का स्तर 129(हरिद्वार) 119(ऋषिकेश) है। ऋषिकेश में प्रदूषम का स्तर देश का आर्थिक राजधानी मुंबई के बराबर रहा। वहीं हवा में अगर SO2 की बात करें तो देहरादून में ये आंकड़ा 26 है जो महाराष्ट्र के उल्लाहसनगर के बराबर है औऱ नोएडा (8), गाजियाबाद(15), कानपुर(7), मेरठ(7),  रांची(20) जैसे शहरों से कहीं ज्यादा है।

जानकारों के मुताबितक ये आंकड़े आने वाले पर्यावरण के तूफान की तरफ इशारा कर रहे हैं। पर्यावरणविद रवि चोपड़ा कहते हैं कि, “ये आंकड़े परेशान करने वाले हैं। कई साल पहले 1980-90 के दशक में इस तरह का प्रदूषण का स्तर देखने को मिला था। हमने कई साल पहले देहरादून की हवा को लगातार मॉनिटर करना बंद कर दिया था पर अब शायद इसे दोबारा शुरू करने की जरूरत है।”

dehradun-vikram

इस बारे में राज्य प्रदूषण बोर्ड के चैयरमैन एस पी सुबद्धि कहते हैं कि “हवा की क्वालिटि घंटाघर और आईएशबीटी में शहर के अन्य इलाकों से खराब है। राजधानी बनने के बाद से ही शहर में निर्माण और यातायात में काफी इजाफा हुआ है। उत्तराखंड में गर्मियों में पर्यटकों औऱ जंगलों की आग के कारण हवा के स्तर में गिरावट आती है और ये बारिशों के साथ संभल भी जाती है। लेकिन लंबे समाधान के लिये एक नई पॉलिसी पर काम करना ज़रूरी है।”

गौरतलब है कि राज्य बनने के बाद से ही देहरादून में खासतौर पर बड़े पैमान पर निर्माण काम होते हुए दिखा। इनमें सरकारी के साथ-साथ निजि क्षेत्र में हुए निर्माण अहम हैं। लेकिन इन निर्माणों को करते हुए पर्यावरण का कितना ख्याल रखा गया ये कह पाना ज़रा मुश्किल है। और इसी नज़रअंदाज़ी का नतीजा है प्रदूषण बोर्ड के ये ताजा आंकडे़।