देहरादून, देहरादून का पानी स्वास्थ्य के लिए हितकार नहीं है, यह मानना है स्पेक्स संस्था के डाॅ. बृजमोहन शर्मा का, डाॅ. बृजमोहन शर्मा प्रमुख वैज्ञानिक हैं, राजधानी की पेयजल व्यवस्था पर कई वर्षों से कार्य कर रहे हैं।
डाॅ. शर्मा का मानना है कि यहां का पानी शुद्ध जल के मानकों पर खरा नहीं उतरता। दून के पानी के सैम्पल लिया था उसमें टीडीएस (टोटल डिसॉल्व सॉलिड) की मात्रा मानकों से कई गुना ज्यादा पाई गई। यहां के पानी में क्लोरीन भी काफी अधिक है।
डाॅ. बृजमोहन शर्मा ने बताया कि दून के लगभग हर घर में आर ओ या वाटर प्यूरीफायर लगा हुआ है। आरओ में 30 से 50 फीसदी पानी व्यर्थ जाता है। इसके साथ ही जो पानी में जरूरी मिनरल्स होने चाहिए वह भी खत्म हो जाते हैं। उनकी संस्था स्पेक्स की ओर से राजधानी के अलग-अलग इलाकों से पानी के 96 सेम्पल लिए गए थे। शहर के पानी में टीडीएस (टोटल डिसॉल्व सॉलिड) और क्लोरीन की मात्रा मानकों से कई गुना ज्यादा पाई गई है।
अकेता एवेन्यू में टीडीएस सबसे अधिक 713 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है।विजय कॉलोनी के पानी में सबसे कम टीडीएस 300 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया, यह स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। नगर के दो स्थानों नई बिंदाल बस्ती, चंदर नगर के पानी में ही क्लोरीन की मात्रा सही पाई गई जो कि 0.2 मिलीग्राम है। अन्य 32 क्षेत्रों में पानी में क्लोरीन की मात्रा शून्य थी। शोध में राजधानी के कुछ 44 इलाके ऐसे भी पाए गए जहां के पानी में क्लोरीन की मात्रा काफी अधिक थी। इसमें मंडी, चकराता रोड, कालिदास रोड, डोबालवाला, सिरमौर रोड बल्लूपुर रोड, शिवाजी मार्ग, कांग्रेस भवन, सालावाला, चीकू वाला, नेहरू कॉलोनी, कंडोली, विजय कॉलोनी, डालनवाला के नाम शामिल हैं।
वह मानते हैं कि पानी में क्लोरीन की अत्यधिक मात्रा या कमी की वजह से अस्थमा, गॉल ब्लडर कैंसर, छाती संबंधी रोग और हृदय से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। डाॅ. शर्मा कहते हैं कि पानी पीने लायक बने और बेकार भी न हो, इसके लिए सरकार एवं पेयजल विभाग को विशेष प्रयास करना होगा। पानी बनाया नहीं जा सकता, बचाया जा सकता है। इसके बर्बाद होने से बचाना हम सबका नैतिक धर्म है।