दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे ड्रीम प्रोजेक्ट चुनावों तक खटाई में पड़ सकता है

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    उत्तराखंड

    लगभग 13 हजार करोड़ की लागत से बनने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे का निर्माण फिलहाल खटाई में पड़ सकता है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इस मामले में बुधवार को कोई अंतरिम आदेश पारित करने से फिलहाल मना कर दिया है। अब इस मामले में 16 फरवरी को सुनवाई होगी।

    भारत सरकार के राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय की ओर से दिल्ली से सहारनपुर होते हुए देहरादून के लिए लगभग 210 किमी लंबे ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे का निर्माण देश की महत्वपूर्ण भारत माला परियोजना के तहत किया जाना प्रस्तावित है। केंद्र सरकार का दावा है कि आधुनिक तकनीक से निर्मित होने वाले इस एक्सप्रेस-वे से दिल्ली से देहरादून की दूरी मात्र दो से ढाई घंटे के बीच सिमट जायेगी।

    प्रधानमंत्री मोदी की ओर से पिछले देहरादून दौरे पर इस एक्सप्रेस-वे का शुभारंभ किया जाना था, लेकिन मामला उच्च न्यायालय में लंबित होने के चलते इसका उद्घाटन नहीं किया जा सका। दरअसल केंद्र सरकार चाहती है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले इस एक्सप्रेस-वे का शुभारंभ किया जाए और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से इस पर काम शुरू कर दिया जाए।

    इस मामले को देहरादून के सामाजिक कार्यकर्ता रेनू पॉल और हल्द्वानी के अमित खोलिया की ओर से अलग-अलग जनहित याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि जिस क्षेत्र से इस एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जा रहा है वह राजाजी नेशनल पार्क के ईको सेंसटिव जोन का हिस्सा है और इसकी जद में बेशकीमती ढाई हजार साल के पेड़ आ रहे हैं।

    एनएचएआई की ओर से बुधवार को इस मामले में उच्च न्यायालय में एक अत्यावश्यक प्रार्थना पत्र पेश कर इससे जुड़ी दोनों जनहित याचिकाओं को खारिज करने की मांग की गयी। एनएचएआई की ओर से कहा गया कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने इस मामले को खारिज कर दिया है। एनएचएआई की ओर से इस मामले में एनजीटी के 50 पेज के आदेश की प्रति भी पेश की गयी। एनजीटी में देहरादून की एक निजी संस्था की ओर से इसे चुनौती दी गयी थी।

    दूसरी ओर याचिकाकर्ता रेनू पाल के अधिवक्ता अभिजय नेगी की ओर से इसका जोरदार विरोध किया गया और कहा गया कि एनजीटी की ओर से इस मामले में कई बिंदुओं की अनदेखी की गयी। नेगी ने कहा कि एनजीटी ने इस मामले में यहां की जैव विविधता, शिवालिक रेंज के पारिस्थितिकी तंत्र (ईको सिस्टम), साल के पेड़ों के पुनर्जनन सिस्टम और इस क्षेत्र की जल बाहुल्यता जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं की अनदेखी की गयी है।

    अदालत ने इसे गंभीरता से लिया। अंत में एनएचएआई की ओर से पेश प्रार्थना पत्र को सुनवाई के लिए स्वीकार तो कर लिया,लेकिन याचिका को खारिज करने और उसमें कोई अंतरिम आदेश पारित करने से साफ मना कर दिया। हालांकि एनएचएआई की ओर से यह भी कहा गया कि यह राष्ट्रीय महत्व की परियोजना है और इसके लंबित रहने से काफी नुकसान हो रहा है।

    अदालत ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि यह पर्यावरण संवेदनशीलता का मामला भी है। धन हानि की पूर्ति की जा सकती है, लेकिन पर्यावरणीय क्षति की पूर्ति नहीं की जा सकती है। इसलिए वह इस पर विस्तृत सुनवाई के बाद ही कोई निर्णय जारी करेंगे। साथ ही सुनवाई के लिये 16 फरवरी की तिथि नियत कर दी।

    उल्लेखनीय है कि एक दिन पहले मंगलवार को उत्तराखंड के खटीमा दौरे पर आये केंद्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी इस एक्सप्रेस-वे की बड़ी तारीफ की थी और उत्तराखंड की समृद्धि के लिए इसे महत्वपूर्ण बताया था।