मिसाल: ऑयस्टर मशरूम की खेती में नई क्रांति ला सकती है ये कोशिश

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मशरूम खेती में देवभूमि एग्रीबिजनेस वेंचर्स टीम की मुहिम रंग ला रही है, कई प्रयासों के बाद उत्तराखंड में ऑयस्टर मशरुम उत्पादन के क्षेत्र में एक तेज़ी आई है जो प्रदेश के साथ-साथ देश के लिये भी मशरूम की खेती में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

जनवरी में देवभूमि एग्रीबिजनेस वेंचर्स की टीम ने टिहरी के मरोड़ा गांव में ऑयस्टर मशरूम की खेती शुरू की। ये मशरूम के ऐसी प्रजाति है जो गेंहू के भूसे पर उगता है, पर इसकी खेती करने की लागत पहाड़ों में रहने वाले किसानों के लिये मंहगी साबित होती रही है, इसलिये इस मशरूम को पहाड़ों की जंगली घास पर उगाया गया और ये पहल कामयाब भी हुई।

oyster mushroom

न्यूजपोस्ट से बात करते हुए इस संस्थान के विजय सिंह बुटोला ने बताया कि, “उत्तराखंजड में मशरूम की खेती करने में सबसे ज्यादा दिक्कत संसाधनों की पड़ती है। मशरूम के बीज, गेहूं का भूसा सस्ते दामों पर नहीं मिल पाता। यहां ऑयस्टर मशरूम का मौसम शुरू हो गया है, समय पर बीज मिलना ज़रूरी है। किसानों को ये बीज दिल्ली और ग्वालियर से लाने पड़ते हैं औऱ भूसा ऋषिकेश से जिसके चलते फसल की लागत बढ़ जाती है औऱ अदिक्तर किसान इसे नही कर पाते हैं।”

इसी खर्चे को कम करने के मकसद से विजय बुटोला की टीम ने गेंहू की जगह जंगली घास का इस्तेमाल किया और इसे एक सफल विकल्प की तरह पेश किया। निरंतर अनुसंधान, खोज और प्रयोगात्मक परीक्षण के बाद मिली सफलता का यह परिणाम है। अब किसानों को इसकी खेती के लिये पहाड़ो में गेहूं के भूसे पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा जिससे मशरुम उत्पादन की लागत में भी कमी आएगी।

जहां अभी ये मशरूम 100-200 रुपये किलो बिकता है वहीं इसकी मांग धीरे धीरे बढ़ रही है। जल्द खराब होने वाले पदार्थ होने के कारण अभी इस मशरूम का बाज़ार चंबा, श्रीनगर, टिहरी, लांबगांव औऱ देहरादून तक सीमित है।

विजय बुटोला कहते हैं,“जितना बड़ा बाज़ार बटन मशरूम का है उतना ही बड़ा बाज़ार ऑयस्टर मशरूम का भी है। पर इसके लिये अभी लोगों में जागरूकता और वैल्यू ऐडिशन करना ज़रूरी है। जैसे मशरूम का अचार, पापड़, वढ़ी, पाउडर के बिस्कुट किया जा सकता है औऱ इनका मार्केट भी बड़ा है।”

ऑयस्टर मशरूम की खेती के लिये जंगली घास का इस्तेमाल न केवल उत्तराखंड बल्कि देश में भी इसकी खेती में क्रांति ला सकता है। सरकार सब्सिडी तो दे रही है किंतु बीज समय पर उपलब्ध नही हो पाते हैं, उत्तराखंड में एक सरकारी स्पान लैब होना जरूरी है। अभी उधान विभाग को डीमआर सोलन से बीज की पूर्ति करनी पड़ रही है। सरकार आने वाले सालों में किसानों की आय को दोगुना करने के दावे तो कर रही है पर ज़रूरी है कि इस दावे को अमली जामा पहनाने के लिये कुछ ठोस कदम उठाये जाये।