हरिद्वार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी, हरिप्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। देवोत्थान एकादशी जो इस बार आठ नवंबर शुक्रवार को मनायी जाएगी। देवोत्थान एकादशी को भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागृत होते हैं और सृष्टि की सत्ता का संचालन पुनः उनके हाथों में आ जाता है। देवोत्थान एकादशी के साथ ही चार माह से बंद पड़े मांगलिक कार्यों का भी शुभारम्भ हो जाता है।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा से निवृत हो जाते हैं और स्वयं को लोक कल्याण लिए समर्पित करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है। इसके बाद से ही विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। इस दिन सभी देवता योग निद्रा से जग जाते हैं।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु समेत सभी देवता योग निद्रा से बाहर आते हैं, ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु समेत अन्य देवों की पूजा की जाती है। देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह भी कराने का विधान है। बताया कि शालीग्राम और तुलसी का इस दिन विवाह कराने वाले को अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान, पुण्य आदि का भी विशेष फल प्राप्त होता है।
बताया कि साल भर में चौबीस एकादशी आती हैं, जिसमें देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी को प्रमुख एकादशी माना जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए। बताया कि देवोत्थान एकादशी ने पूर्णिमा तक पांच दिनों तक गंगा या पवित्र नदी में तारों की छांव में स्नान करने से पूरे कार्तिक मास में गंगा स्नान करने का फल मिलता है।
शुक्ल के मुताबि इस बार एकादशी तिथि का प्रारंभ 7 नवंबर को सुबह 9 बजकर 55 मिनट से होगा तथा 8 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट पर एकादशी समाप्त होगी। उदय तिथि में एकादशी होने के कारण 8 नवम्बर को ही एकादशी का पर्व मनाया जाएगा।