निजाम बदला तो सामने आ रहे विवि के ‘खेल’

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    (देहरादून) उत्तराखंड आयुर्वेद विवि में निजाम बदलते ही अब कई तरह के ‘खेल’ से पर्दा उठ रहा है। यहां पूर्व अधिकारियों ने अपने खासमखास पर खूब मेहर बरसाई। हद ये कि विवि परिसर में सरकारी संपत्ति व भवनों तक पर निजी संस्था का कब्जा हो गया। जब मौखिक आदेश पर भवन खाली नहीं हुआ तो विवि के प्रभारी कुलसचिव ने बीते दिनों इस संबंध में नोटिस जारी किया। दोपहर बाद विवि प्रशासन ने हर्रावाला पुलिस की मदद से सभी भवनों के ताले तोड़कर अपने ताले लगा दिए।

    आयुर्वेद विवि में तमाम तरह के विवाद होते रहे हैं। इस बार एक नया मामला सामने आया। दरअसल 20 सितंबर 2015 को केरल की धनवंतरी वैद्यशाला के साथ आयुर्वेद विवि का एक करार हुआ। जिसके तहत पंचकर्म केंद्र संचालित होना था। धनवंतरी संस्था के तरफ से एक स्थानीय सहयोगी इस केंद्र को चलाने लगे। जिन्हें विवि में भवन अलॉट किए गए। लेकिन, लगभग नौ माह पूर्व संस्था का करार खत्म हो गया। इसके बाद भी सरकारी संपत्ति से कब्जा नहीं हटा। कई बार मौखिक आदेश के बाद भी जब भवन खाली नहीं किए गए तो प्रभारी कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार अधाना ने नोटिस जारी किया। प्रभारी आयुर्वेद संकाय डॉ. पंकज शर्मा ने हर्रावाला पुलिस की मदद से सभी कमरों के ताले तोड़ यहां विवि प्रशासन की तरफ से ताले जड़ दिए।

    नौ माह से वेतन नहीं :पंचकर्मा केंद्र के कर्मचारियों को गत 9 माह से वेतन नहीं मिला है। हाल में इसे लेकर हंगामा भी हुआ था। गुरुवार को संस्था के कर्मचारियों को विवि परिसर के गेट पर ही रोक लिया गया। उन्हें बताया गया कि संस्था का करार खत्म हो चुका है।

    कार्मिकों के नाम पर भी खेल:विवि का पूर्व निजाम वैधशाला के कार्मिकों के नाम पर भी खेल करता रहा। विवि के मानकों को पूरा करने के लिए मुख्य परिसर के अस्पताल में कर्मचारी पिछले दो साल से संबद्ध थे। जिन्हें बकायदा सीसीआइएम में स्टाफ के रूप में दिखाया गया। यहां तक की कर्मचारियों को स्थाई नौकरी देने तक का झांसा दिया गया।

    शह मात का खेल: विवि में अब शह मात का खेल चल रहा है। हाल में डॉ मृत्युंजय मिश्रा को विवि का कुलसचिव बनाने के एक दिन बाद ही सरकार को अपने फैसले पर रोलबैक करना पड़ा था। वहीं विवि के प्रभारी कुलसचिव ने उन्हें चार्ज ही नहीं दिया था। डॉ. मिश्रा ने प्रभारी कुलसचिव की नियुक्ति पर सवाल उठाए थे। जिसे लेकर हाईकोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की गई है। याचिका दाखिल करने वाला कोई और नहीं बल्कि उक्त संस्था से ही जुड़ा शख्स है।