गोपेश्वर, पर्वतीय क्षेत्रों में कलस्टर आधारित ट्राउट फिश पालन को बढावा देने के लिए बैंरागना (चमोली) में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला के समापन पर बोलते हुए जिलाधिकारी चमोली स्वाति एस भदौरिया ने काश्तकारों को ट्राउट फार्मिंग के लिए प्रोत्साहित करते हुए हर सम्भव मदद देने की बात कही।प्रशिक्षण कार्यशाला में रूद्रप्रयाग, उत्तराकाशी, बोगेश्वर, पिथौरागढ़, टिहरी तथा चमोली के काश्तकारों ने भाग लिया।
समापन कार्यक्रम में जिलाधिकारी ने कहा कि, “पर्वतीय जिलों में ट्राउट प्रजाति की मछली पालन के लिए अनुकुल वातावरण होने के कारण आपार संभावनाऐं है। ट्राउट फिश की बाजार में बहुत मांग होने से इसका अच्छा दाम भी काश्तकारों को मिल रहा है। इससे जुड़कर कोई भी काश्तकार अपनी आर्थिकी को मजबूत बना सकता है।” उन्होंने मनरेगा से कन्र्वजेंस कर मत्स्य तालाबों का निर्माण कराने के निर्देश दिये, ताकि काश्तकारों को पौंड निर्माण में कम व्यय करना पडे। कहा कि जिले में ट्राउट फिस पालन से जुड़े काश्तकार/समितियां अगर अच्छा प्रोडेक्शन करती है, तो प्रशासन के ओर से मछली के विपणन की व्यवस्था के साथ-साथ इसकी अच्छी ब्राॅनिंङग और पैंकिग की भी व्यवस्था के लिये पूरा सहयोग किया जाएगा।
कार्यक्रम में उप निदेशक नियोजन एसके पुरोहित ने बताया कि, “ट्राउट फार्मिंग के लिए क्लाइमेट, शीतजल एवं फीड की आवश्यकता होती है। इसके लिए विरही गाड, बालखिला, नन्दाकिनी, भागीरथी, पावर, टोस, यमुना, घौली, गौरी गंगा आदि प्रमुख नदियां है। ट्राउट जोन की नदियों के आस पास ट्राउट रेसवेज का निर्माण कर उनमें ट्राउट मत्स्य पालन की प्रबल संभावनाऐ है।” उन्होंने बताया कि, “भारत सरकार की ब्लू रिवोल्यूशन योजना अंतर्गत एक यूनिट ट्राउट रेसवेज के निर्माण लागत दो लाख एवं निवेश लागत 2.5 लाख निर्धारित है, जिसमें रेसवेज के निर्माण के लिए 50 प्रतिशत तक अनुदान की सुविधा है। कलस्टर आधारित फार्मिंग करने से निर्माण एवं उत्पादन लागत कम होने पर काश्तकारों को अधिक फायदा मिलता है।”