कोरोना वायरस के चलते डॉ गायत्री नैनीताल में रुकीं, विद्यार्थियों को पढ़ा रहीं ऑनलाइन

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नैनीताल,  कोरोना वायरस के चलते चीन की शियान जाइटोंग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डा. गायत्री कठायत चीन नहीं जा पा रही हैं। वे इन दिनों अपने घर नैनीताल में हैं, लेकिन उन्होंने घर में ही बकायदा अपना विशेष कार्यालय स्थापित कर लिया है। यहां से वे शियान यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं एवं शोधार्थियाें को ऑनलाइन पढ़ा रही हैं।

डा. गायत्री के नाम एक भूविज्ञानी होने के तौर पर दिसम्बर, 2017 में दुनिया के 5700 वर्षों के मौसमी आंकड़े तैयार करने की उपलब्धि दर्ज है। करीब 10 साल से चीन के जाइटोंग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। वे प्रतिदिन 12 से 14 घंटे घर से ही कार्य कर रही हैं। विद्यार्थियों के लिए यहीं से कक्षाएं लेकर उनके लिए ऑनलाइन लेक्चर व प्रजेंटेशन तैयार करती हैं और शोध कार्य करती हैं। उन्हें विद्यार्थियों को उपलब्ध कराती हैं और उनके सवालों के जवाब भी देती हैं। जरूरत पड़ने पर विद्यार्थियों से सीधा संवाद भी करती हैं।

डा. गायत्री ने बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो वे विद्यार्थियों की ‘ओएमआर’ शीट पर परीक्षा भी लेंगी। उन्होंने बताया कि वे शियान में जो करती थीं, उसका केवल प्रयोगात्मक कार्य छोड़कर 90 फीसदी कार्य यहां से भी कर पा रही हैं। ऑनलाइन पढ़ाना उनके लिए कुछ नया नहीं है। अक्सर ही संगोष्ठियों में जाने पर वे विद्यार्थियों से ऑनलाइन रहती हैं। उन्होंने कहा, चीन में भले मोबेलिटी यानी कहीं आना-जाना थम गया है, किंतु यूनिवर्सिटी में पढ़ाई नहीं रुकी है। ड्रापबॉक्स के माध्यम से यूरोपीय व अमेरिकी देशों की तरह विद्यार्थियों को वर्षों से ऑनलाइन पढ़ाया जाता है।

ड. गायत्री ने बताया कि वह 1 जनवरी को एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने के लिए वियतनाम गई थीं। वहां चल रहे स्प्रिंग फेस्टिवल के वे घर आ गई थीं। पहले उन्हें उनका शहर शियान कोरोना प्रभावित हुबे राज्य के वुहान शहर से 1000 किमी दूर उत्तर में होने की वजह से उन्हें कोरोना से संक्रमित होने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वियतनाम में पता चलने पर वह भारत आ गईं। उन्हें 1 फरवरी को लौटना था, लेकिन उनकी यूनिवर्सिटी ने उन्हें सहित सभी प्रोफेसरों व छात्र-छात्राओं को बचाव व सुरक्षा उपायों के तहत घर पर ही रुकने की हिदायत दी है

चीन में युवा पीढ़ी नहीं खाती अभोज्य वस्तुएं:
यह पूछे जाने पर कि क्या चीन में वहां के अभोज्य पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों को खाने की जीवनशैली के कारण कोरोना वायरस फैला है, उन्होंने कहा कि वहां युवा व नई पीढ़ी कभी भी ऐसे अभोज्य वस्तुएं नहीं खाते। अलबत्ता वहां की पुरानी पीढ़ी में व ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे भोज्यों की संस्कृति बताई जाती है। लेकिन उन्होंने अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में कभी किसी को ऐसे खाते हुए नहीं देखा है।