25 साल पहले भी ऐसे ही फंसे थे हरक सिंह

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हरक

कहते हैं समय खुद को दोहराता है। भाजपा से निष्कासित कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के मामले में ऐसा ही हो रहा है। बात 25 साल पहले की है तब भी इसी तरह, भाजपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया था और उन्हें अपनी राजनीतिक राह तलाशने के लिए आज की ही तरह दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।

दरअसल, नब्बे के दशक में राम लहर के बाद उत्तराखंड में जब भाजपा चमकी, तब कई नेता भी चमके थे। हरक सिंह रावत भी उनमें से एक थे। यूपी के जमाने में ही उन्हें राज्य मंत्री की कुर्सी हासिल हो गई, तो उनका कद अचानक से और बड़ा हो गया। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में जब पौड़ी सीट पर हरक सिंह रावत का टिकट काट दिया गया था, तो उन्होंने खुलेआम बगावत का बिगुल फूंक दिया था। उन्होंने भाजपा के हाईकमान पर इस कदर दबाव बनाया था कि उन्हें मजबूरी में टिकट देना पड़ा था और पार्टी के घोषित उम्मीदवार मोहन सिंह रावत गांववासी को मायूस होना पड़ा था।

इसके बाद, ज्वाल्पा धाम की एक घटना ने हरक के भाजपा से निष्कासन की पटकथा को तैयार कर दिया था। ज्वाल्पा धाम में हरक समर्थकों ने पार्टी के पर्यवेक्षक को धमका दिया था और वहां पर खुद हुड़दंग मचाया था। पार्टी ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए हरक सिंह रावत को छह साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

इस बीच, करीब पांच साल का समय हरक सिंह रावत के लिए कठिन परीक्षा लेने वाला रहा, जबकि उन्होंने कुछ समय खुद का संगठन उत्तराखंड जनता मोर्चा बनाकर संघर्ष किया और बाद में बसपा में शामिल हो गए। इस दौरान, वह विधान परिषद का चुनाव तीरथ सिंह रावत से हारे, जबकि लोकसभा चुनाव में उन्हें भुवन चंद्र खंडूरी ने शिकस्त दे दी थी।

उत्तराखंड राज्य का वर्ष 2000 में गठन होना हरक सिंह रावत के राजनीतिक करियर को नई ऊंचाई देने वाला साबित हुआ। कांग्रेस उनकी नई पार्टी बनी और वर्ष 2002 में हुए उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव में वह लैंसडाउन सीट से जीतकर एनडी सरकार में मंत्री बन गए। वर्ष 2007 में भाजपा सत्तासीन हो गई, लेकिन हरक सिंह रावत नेता प्रतिपक्ष रहे। इसके बाद, वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट बदलते हुए वह लैंसडाउन से सीधे रुद्रप्रयाग पहुंच गए। यहां भी जीत हासिल की और कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री हो गए। वर्ष 2016 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार से बगावत करके वह भाजपा में शामिल हो गए। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर कोटद्वार सीट से जीतकर सरकार में फिर कैबिनेट मंत्री बन गए।

अपने करीब 30 साल के राजनीतिक जीवन में हरक सिंह रावत को दो बार भाजपा से निष्कासन की कार्रवाई झेलनी पड़ी है। जिस तरह 25 साल पहले भाजपा से निकल कर अपनी जगह बनाने में हरक को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, वैसी ही चुनौती तात्कालिक तौर पर फिर से उनके लिए नजर आ रही है। कांग्रेस में शामिल होने तक के लिए हरक सिंह रावत को अब संघर्ष करना पड़ रहा है।

वर्ष 2016 के सत्ता संग्राम में हरक सिंह से चोट खाए हरीश रावत अब उनके सामने एक दीवार की तरह पेश आ रहे हैं। हालांकि हरीश रावत यह कह रहे हैं कि पार्टी को कभी-कभी रणनीतिक तौर पर अलग तरह के निर्णय भी लेने पड़ते हैं, फिर भी बगावत और इसके लिए दोषी लोगों को जेहन में रखते हुए निर्णय लिए जाने चाहिए। चुनावी बेला में जबकि उम्मीदवारों ने अपने क्षेत्रों में ताकत झोंकना शुरू कर दिया है, हरक सिंह रावत के सामने फिलहाल यह तस्वीर एकदम स्याह है कि उनकी पार्टी और विधानसभा सीट कौन सी होगी।