लचर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते जच्चा-बच्चा की मौत

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(देहरादून) उत्तराखंड की लचर स्वास्थ्य सेवाओं ने गुरुवार को एक और जच्चा-बच्चा की जान ले ली। बेड के अभाव में महिला को बरामदे में बच्चे को जन्म देना पड़ा और उपचार न मिलने के कारण दोनों ने दम तोड़ दिया। चिंता की बात यह भी है कि यह सब किसी दूरस्थ क्षेत्र में नहीं, बल्कि राजधानी के दून महिला अस्पताल में हुआ है।
उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ और हाल मसूरी निवासी सुरेश सिंह राणा गत 15 सितम्बर को पत्नी सुचिता को लेकर राजधानी के प्रमुख सरकारी चिकित्सालयों में शुमार दून महिला अस्पताल पहुंचे थे। 27 साल की सुचिता को सात माह का गर्भ था। चिकित्सकों का कहना है कि वह बेहद कमजोर थी, लेकिन उससे भी कमजोर, बल्कि मरणासन्न में है अस्पताल की हालत। सुचिता को अस्पताल में एक अदद बेड तक नहीं मिला और वह पांच दिन से बरामदे में पड़ी रही। गुरुवार की सुबह साढ़े चार बजे उसने बाहर खुले में ही बच्चे को जन्म दे दिया। परिजनों का कहना है कि वह स्टाफ से जच्चा को बचाने की गुहार लगाते रहे पर मदद नहीं मिली। करीब बीस मिनट तक तड़पने और उपचार न मिलने के कारण जच्चा-बच्चा ने दम तोड़ दिया।

डॉक्टर-स्टाफ ने जच्चा-बच्चा को देखने से किया इंकार
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि उनके कहने के बावजूद डॉक्टर व स्टाफ ने जच्चा-बच्चा को देखने से इंकार कर दिया। पांच दिन से अस्पताल की बदइंतजामी झेल रहे और गर्भवती की दुर्दशा देख रहे लोगों का गुस्सा जच्चा-बच्चा की मौत के बाद फूट गया और उन्होंने अस्पताल में हंगामा कर दिया। सीएमएस डॉ. मीनाक्षी जोशी का घेराव कर लापरवाही बरतने वाली डॉक्टर व स्टाफ पर कार्रवाई की मांग की। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को आना पड़ा।
फोन पर मशगूल था स्टाफ
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अस्पताल का स्टाफ इतना संवेदनहीन है कि देर रात गर्भवती को शौचालय जाने की जरूरत महसूस हुई तो किसी ने उसकी मदद तक नहीं की। वहां मौजूद लोग मृतका के पति की मदद के लिए आगे आए और उसे कंबल में उठाकर शौचालय तक ले गए। मृतका के पति सुरेश सिंह राणा कहते हैं कि रात सुचिता दर्द से तड़प रही थी, लेकिन उनके बार-बार आग्रह पर भी स्टाफ ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। राणा कहते हैं कि स्टाफ फोन पर मशगूल था।
बचाव करती दिखीं सीएमएस
राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में हुए इस शर्मनाक घटनाक्रम के बाद दून महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. मीनाक्षी जोशी बचाव की मुद्रा में दिखाई दी। उन्होंने कहा कि अस्पताल में बेड की कमी है और इसके लिए वह कई बार शासन को लिख भी चुकी हैं। डॉक्टरों और स्टाफ के बर्ताव की शिकायत पर कहा कि इस मामले की जांच की जा रही है।
फूट-फूट कर रोया मृतका का पति
मृतका के पति को अब अपनी 9 साल की बच्ची ऋषिता का भी ख्याल रखना है जिसकी मां और छोटे भाई को इस सिस्टम ने छिन लिया है। उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत को इस घटना ने फिर एक बार कठघरे में खड़ा कर दिया है, पर सरकार है कि दावों से बाहर निकल ही नहीं पा रही है। यह संवेदनहीनता की हद है कि सिस्टम एक के बाद एक जाने कितने मासूमों के प्राण लील चुका है।
तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित
जच्चा-बच्चा की मौत के मामले में अस्पताल प्रशासन ने तीन सदस्यीय टीम गठित कर दी है। जिसमें सीएमएस डॉ. मीनाक्षी जोशी, डॉ. चित्रा जोशी और एनएस डॉ. सतीश धस्माना शामिल हैं। सीएमएस का कहना है कि जांच में आरोप सही पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
बच्चे का टपकेश्वर और मां का लक्खीबाग में अंतिम संस्कार
जच्चा-बच्चा की मौत के बाद दून अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने एक पहल की। उनके द्वारा गठित कल्याण कोष से परिजनों को एंबुलेंस उपलब्ध कराई गई। परिजन बिना पीएम कराए ही महिला और नवजात का शव ले गए। उन्होंने टपकेश्वर स्थित शमशान घाट में बच्चे और लक्खीबाग स्थित शमशान घाट में महिला का अंतिम संस्कार किया।
सात माह की गर्भवती थी महिला
दून महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. मीनाक्षी जोशी ने बताया कि महिला सात माह की गर्भवती थी। उसमें खून की भारी कमी थी। उसे खून चढ़ाया भी जा रहा था। चार यूनिट खून चढ़ने के बाद रिएक्शन होने पर खून चढ़ाना रोका गया था। उसे लेबर रूम में ही रखा गया था। सुबह वह खुद ही रूम से बाहर आ गई। गर्भपात की वजह से उसकी तबीयत बिगड़ गई। उपचार शुरू करने के कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई। जिस किसी की भी लापरवाही सामने आएगी उस पर निश्चित ही कार्रवाई की जाएगी।