तो अब एक चम्मच बचायेगी दुनिया

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कैसा होगा अगर हम खाना खाने के बाद अपने बर्तन और चम्मच भी खा सकतें है? है ना अनोखी बात, जी हा यह कहानी कुछ ऐसी ही है जिसमें आपको पता चलेगा कुछ नया और अलग।

देहरादून के बहुत से ऐसे परिवार है जो पर्यावरण संरक्षण और वातावरण की शुद्धता के बारे में सोचते हैं। इसके लिए उन्होंने एक स्वास्थ्य और सुविधाजनक रास्ता निकाला है वातावरण को स्वच्छ और सुंदर रखने का। प्लास्टिक के बर्तनों के बजाय इडिबल स्पून यानि की खाने वाली चम्मच जो कि बाजरा से बनती है और गन्ने से बनाई हुई प्लेट में खाना खाते हैं। इस तरह के प्रोडक्ट अगर बाजार में उपलब्ध होंगे तो लोग वैसे भी प्लास्टिक के बर्तन में खाना नहीं पसंद करेंगे और साथ ही पालिथिन के इस्तेमाल पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा। जैसा कि सब जानते हैं कि पालिथीन बैग और प्लास्टिक का इस्तेमाल बैन हो चुका है लेकिन इसके बदले अगर इडिबल बर्तन यानि खाने योग्य बर्तन बाजार में आऐंगे तो इस बैन को कायम रखने में बहुत मदद मिलेगी।

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यह नए प्रोडक्ट ना केवल आर्गेनिक और वातावरण के अनुकूल है बल्कि इनके दाम भी काफी कम है। प्लास्टिक के बर्तन को हम बहुत पहले से इस्तेमाल कर रहे हैं तो इसको हम खराब नहीं कह सकते लेकिन अगर बात किसी खाने को या तरल पदार्थ को स्टोर करके रखने की हो तो प्सास्टिक से खराब कोई और चीज हो भी नहीं सकती। नारायण पीसापति जिन्होंने रिसर्च फैकल्टी में अपनी नौकरी छोड़ कर इडिबल कटलरी में अपना रास्ता चुना और काफी हद तक सफल भी रहे। नारायण कहते हैं कि मेरा लक्ष्य है कि मैं सभी प्लास्टिक कटलरी को इडिबल कटलरी में बदल दूं, खासकर इडिबल स्पून यानि की खाने योग्य चम्मच जो खाने के बाद खाएं जा सके।

नारायण ने बताया कि जब मैं फिल्ड विजीट पर होता था तो मुझे बाजरा की ठंडी रोटी से ही काम चलाना पड़ता था, तब मैने यह महसूस किया कि यह लोगों को खाने के लिए भी सही रहेगा। इसके अलावा हवाई जहाज और दूसरी जगहों पर दिया जाने वाला प्लास्टिक चम्मच बहुत साफ सुथरी और अच्छी कंडिशन में नहीं बनाया जाता, इसलिए इससे खाना खाने से बहुत से कैमिकल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। 2006 में इडिबल कटलरी के बारे में सोचा और सबसे पहले मेरे दिमान में यह बात आई कि बाजरा बहुत ही पौष्टिक है। एक ऐसा तत्व जो नेचुरल और फायदेमंद हैं और जो खेती में इस्तेमाल होता है। नारायण हैदराबाद के रहने वाले है।

इडिबल कटलरी का ट्रेंड देहरादून में भी आया और बहुत से लोग इस वातावरण अनुकूल प्रोडक्ट को लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। सुजाता पाल शहर की सोशल एक्टिविस्ट हैं जो इस तरह के प्लेट, बाउल, कप और चम्मच आदि डिस्ट्रीब्यूट करने का काम करती हैं। यह सारे कटलरी बगासी यानि की गन्ने के छिलके से बनते हैं। मैं पिछले दो दशक से प्लास्टिक के बदले किसी और चीज को ढूंढ रही थी। यह बतर्न 60 दिन के अंदर खाद बन जाता है जबकि प्लास्टिक को सौ साल से ज्यादा समय लगाता है। जो लोग वातावरण और पर्यावरण के बारे में फिकरमंद हैं वह थर्माकोल,प्लास्टिक और स्टाईरोफोम की जगह यह सस्ते बर्तन इस्तेमाल कर सकते हैं।

सोचने की बात यह है कि पिछले साल उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक आर्डर दिया था जिसमें प्लास्टिक से बने बैग और दूसरे आइटम को बैन किया गया था लेकिन यह नियम सख्ती से लागू नहीं हो पाया। राजपुर रोड की बबिता दास कहती हैं कि यह सुन कर अच्छा लगा रहा कि प्लास्टिक के कटलरी का कोई अल्टरनेटिव तो है, सड़क के किनारे और ड्रेनेज में पालिथीन बैग की वजह से सड़के के किनारे बुरे हालात हैं। प्लास्टिक के चम्मच और थर्माकोल के प्लेट और कप भी पर्यावरण के लिए खतरनाक है। अगर कोई दूसरा फायदेमंद विकल्प है तो सभी को खासकर बड़े इन्स्टीट्यूशन और स्कूलों को इस पहल को अपने इस्तेमाल में लाना होगा।

तो एक चम्मच से शुरु हुई यह मुहिम दुनिया को बचाने के लिए आगे आ चुकी है और लोग पर्यावरण संरक्षण के लिए इस चम्मच को इस्तेमाल भी कर रहे हैं।