अब सरकार और चुनाव आयोग में मुठभेड़ की तैयारी है। वित्तीय वर्ष 2017 के बजट में वित्तमंत्री ने चुनावी बांड जारी करने की बात कही थी। उसे अब वे अमलीजामा पहनाने वाले हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने सरकार को लिखा है कि इन बांडों से चुनावी चंदे की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी। इन बांडों के जारी होने पर यह पता ही नहीं लग सकेगा कि किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है। अभी तो कोई व्यक्ति दो हजार रुपये तक और कोई संस्था 20 हजार तक चंदा दे तो उसे अपना नाम बताने की जरुरत नहीं है लेकिन अब लोग करोड़ों रुपये के बांड लेंगे और वे चाहे जिस पार्टी को दे सकेंगे। देने वाले और लेने वाले के नाम बिल्कुल गोपनीय रखे जाएंगे। चंदादाता को अपनी ऑडिट रिपोर्ट में भी उसे दिखाने की जरूरत नहीं होगी। चंदा बैंको के जरिए ही दिया जा सकेगा। यानी बांड बनाते वक्त बैंक भी डटकर कमीशन कमाएंगे। जो बांड बनवाएगा, उसका नाम बैंक को तो पता होगा लेकिन वह नाम कोई भी हो सकता है, असली भी और नकली भी !
सरकार के दिमाग में यह नया फितूर क्यों आया ? उसे पता है कि नोटबंदी और एकात्म-कर (जीएसटी) के बावजूद काला धन धड़ल्ले से चलेगा। उस काले धन को सफेद करने का यह नया तरीका सरकार ने खोज निकाला है। इसका एक फायदा जरूर है। जो नकदी पैसा नेता या दलाल लोग बीच में खा जाते हैं, वह वे नहीं खा पाएंगे। दूसरा फायदा यह गिनाया जाता है कि चंदा देने वाला भी नहीं फंसेगा। वह राम को कितना दे रहा है और रावण को कितना, यह किसी को पता नहीं चलेगा।
तीसरा फायदा राजनीतिक दलों को होगा। वे जनता के सामने सीना तानकर कहेंगे कि देखो, हमने काले धन का एक पैसा भी नहीं छुआ। इससे बड़ा ढोंग और पाखंड क्या हो सकता है ? चुनावी बांड जारी करना भ्रष्टाचार की जड़ों को सींचना है। सरकार के लिए यह मालूम करना बहुत आसान है कि जो पैसा उसकी पार्टी को मिला है, उसके अलावा शेष बांडों का क्या हुआ है ? सत्तारुढ़ दल अपनी जेब आसानी से भर लेगा लेकिन विपक्ष की जेब में बड़ा-सा छेद कर देगा। डर के मारे विपक्ष को कोई बांड ही नहीं देगा। भाजपा जरा सोचे, जब वह विपक्ष में होगी तो उसका क्या होगा ?