थम नहीं रहा स्वाइन फ्लू का आतंक, अब तक 14 की मौत

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राजधानी में स्वाइन फ्लू लगातार पैर पसार रहा है। मरीजों की संख्या में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। सरकार स्वास्थ्य सेवाओं का आलम यह है कि मरीज के मरने के बाद उनमें स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो रही है। लचर व्यवस्थाओं के चलते अब तक 14 मरीजों की मौत हो चुकी है।

स्वाइन फ्लू दून में लगातार अपने पैर पसार रहा है। बीते रोज मिली रिपोर्ट में कोई पॉजीटिव मामला सामने नहीं आ है लेकिन कुल मामलों पर गौर करें तो अभी तक 75 मामलों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो चुकी है। रिपोर्ट देरी से मिलने के कारण मारजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि होने में देरी हो रही है। शुक्रवार को भी एक ऐसा ही मामला सामने आया। उतराखंड चिन्यालीसौढ़ की चार वर्षीय जानवी की रिपोर्ट में शुक्रवार को स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई। जबकि बीमारी से ग्रस्त जानवी की नौ अगस्त को ही मौत हो गई है। ऐसे कई मामलों सामने आ चुके है। जिनमें रिपोर्ट आने से हफ्तों पहले ही मरीज अपनी जान गवां चुके थे। मौजूदा स्थिति की बात करें तो अभी भी 28 मामलों में रिपोर्ट आना बाकी है।

प्रदेश में हर साल स्वाइन फ्लू के मामले सामने आ रहे हैं। इस साल जनवरी से अब तक 208 संदिग्ध मरीजों के सैंपल लिए गए हैं। जिनमें पॉजिटिव मामलों की संख्या 75 तक पहुंच गई है। स्वाइन फ्लू को लेकर विभाग भले ही सक्रियता के दावे कर रहा है। मगर लचर व्यवस्था के चलते मरीजों की जान सांसत में बनी है। संदेह पर जिन मरीजों के सैंपल प्रारंभिक लक्षण के बाद जांच के लिए भेजे जा रहे हैं, उनपर भी कई दिन बाद भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही। ऐसे में तुक्के में मरीज का उपचार चल रहा है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां स्वाइन फ्लू की पुष्टि मरीज की मौत के बाद हुई।

एचआईएचटी में अपनी परिचित का इलाज कर रहे सहारनपुर निवासी अभिषेक ने बताया कि चार अगस्त को उन्होंने 44 वर्षीय शालिनी अग्रवाल को अस्पताल में भर्ती कराया लक्षण को देखते हुए अस्पताल द्वारा इलाज पहले शुरू कर दिया गया। लेकिन रिपोर्ट में स्वाइन फ्लू की पुष्टि 10 अगस्त को हुई। समय रहते रिपोर्ट मिलने से इलाज और बहतर हो सकता है। गनीमत है कि हमने समय से उपचार कराया। रिपोर्ट की देरी मरीजों के लिए मुसीबत बन रही है। हालांकि सीएमओ डॉ. टीसी पंत के मुताबिक स्वास्थ्य महकमा स्वाइन फ्लू से निबटने के लिए तैयार है। दवाइयां भी उपलब्ध हैं। निजी व सरकारी अस्पतालों को मरीज में स्वाइन फ्लू के लक्षण मिलने पर तुरंत सूचना देने को कहा गया है।

उत्तराखंड में सिर्फ एक लैब
उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू जांच की एकमात्र लैब श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में है। यहां पर कुझ ही घंटों में स्वाइन फ्लू परीक्षण की रिपोर्ट तैयार हो जाती है एनसीडीसी नई दिल्ली से मान्यता प्राप्त इस लैब में सभी अत्याधुनिक सुविधाएं हैं। महंत इंदरेश अस्पताल खुद सरकार अस्पतालों में आए रहे संदिग्ध मामलों में स्वाइन फ्लू के सैंपल जांचने के लिए तैयार है, इस बारे में अस्पताल द्वारा पहल भी की गई लेकिन इसके बावजदू भी सैंपल्स को जांच के लिए दिल्ली भेजा जा रहा है। जिस कारण देरी हो रही है। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी भूपेंद्र रतूड़ी ने बताया कि स्वाइन फ्लू की जांच संबंधित एक एमओयू प्रस्ताव बनाकर हमने स्वास्थ्य विभाग को भेजा था, उसका कोई जवाब अभी तक नहीं मिला है। हमारा ध्येय है कि आम जनता को समय से रिपोर्ट मिल जाए ताकि उसका ट्रीटमेंट समय से शुरू हो सके।

डॉ. तारा चंद पंत, मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया, “जांच के लिए नमूने दिल्ली भेजे जाते हैं। जिसकी रिपोर्ट आने में वक्त लगता है। हालांकि इस बीच मरीज का उपचार शुरू कर दिया जाता है।” वहीं डॉ. पुनीत चंद्रा, जनपद नोडल अधिकारी, स्वाइन फ्लू ने कहा, “अभी तक 75 मामले स्वाइन फ्लू के सामने आ चुके हैं। इस समय 26 मरीज भर्ती हैं। मरीजों का इलाज अलग-अलग अस्पताल में चल रहा है।”

मौसम में नमी बढ़ा रही परेशानी
स्वाइन फ्लू के वायरस और मौसम में गहरा संबंध है। कम तापमान और ज्यादा नमी के कारण हवा घनी होती है। जो वायरस के एक्टिव होने में मददगार बन रही है। यही कारण है कि स्वाइन फ्लू दून में लगातार अपना असर दिखा रहा है। क्या बच्चे और क्या बड़े, यह हर किसी को अपनी गिरफ्त में ले रहा है।

बुजुर्गों और बच्चों को ज्यादा खतरा
स्वाइन फ्लू बुजुर्गों और बच्चों को जल्दी गिरफ्त में लेता है। इस साल सामने आए स्वाइन फ्लू के अधिकतर मामलों में इस बात की तस्दीक भी होती है। इनमें से अधिकांश मरीजों की उम्र 40 साल से ऊपर या पांच साल से कम थी। ऐसे में बुजुर्गों और बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर खासी सतर्कता बरतने की जरूरत है। इसके अलावा गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों में भी स्वाइन फ्लू होने का खतरा ज्यादा रहता है। वरिष्ठ फिजिशियन मुकेश सुंद्रियाल का कहना है कि आयु बढ़ने के साथ ही मनुष्य में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। इसी तरह बच्चों में भी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है। ऐसे में इन दोनों आयु वर्ग में बीमारियों की चपेट में आने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। स्वाइन फ्लू का वायरस भी बच्चों और बुजुर्गों पर ही सबसे ज्यादा अटैक करता है।