हल्द्वानी। ये बात सुनने में थोड़ी सी अजीब लग सकती है कि जहां हमारे देश का बड़ा हिस्सा इस समय बारिश का इंतजार कर रहा है, वहीं कई गांव बारिश के नाम से ही डर जाते हैं। उत्तराखण्ड के हल्द्वानी शहर से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर बसा नकायल गांव भी इन्हीं गांवो में से एक है।
इस गांव के ग्रामीणों ने सड़क और पुल बनाने की मांग को लेकर सरकार पर गांव की अनदेखी करने का आरोप लगाया है, अब यहां के ग्रामीण अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर धरने पर बैठे हैं।
यहां बरसात लाती है मुसिबत
बरसात की काली रात में जब-जब बारिश की तेज बौछारों के साथ बिजली कड़कने की आवाज सुनाई देती है तो नकायल गांव के भयभीत ग्रामीण अपनी सलामती के लिए भगवान से दुआएं मांगने के लिए मजबूर हो जाते हैं। भारी बरसात के कारण हल्द्वानी तक जाने वाले संपर्क मार्ग का टूट जाना आम बात हो गई है। जिससे गांव के लोगों के लिए हफ़्तों तक खाद्य सामग्री और जरूरी सामग्री का अकाल पढ़ जाता है। नकायल गांव के लोग गांव के सड़क और सूखी नदी पर पुल बनाने की मांग को लेकर स्थानीय विधायक, अफसरों से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री तक मिल चुके हैं लेकिन कोई भी उनकी फ़रियाद नहीं सुन रहा। ऐसे में वे जाएं तो जाएं कहां!
सरकार से लगा चुकें हैं गुहार: ग्रामीणों के मुताबिक पिछले 67 सालों से लगातार संघर्ष करने के लिए हम मजबूर है। पहाड़ों के दूरदराज़ सीमान्त इलाके की तरह जहां आज भी अखबार सुबह की बजाय शाम को पहुंचता हो, उस गांव के विकास की उम्मीद करना कितना मुश्किल है, इसका अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है। 1952 से लेकर आज तक यहां के बाशिंदों का एक ही सपना रहा है की हल्द्वानी से नकायल गांव को जोड़ने वाली सड़क और उस पर बहने वाली सुखी नदी में पुल बनाया जाए लेकिन सपने हकीकत में नहीं बदल पाए।
आजादी के बाद भी नहीं बदली इस गांव की तस्वीर:1953 से गांव की कई पीढ़ियां सपने देख-देख गुजर गईं लेकिन आज तक ना ही सड़क का निर्माण हुआ है और ना ही सुखी नदी में पुल का निर्माण हो पाया है। स्थानीय लोगों की मानें तो पहाड़ों में हल्की बरसात से सूखी नदी अपना तांडव मचाना शुरू कर देती है। ऐसे में यहां के लोगों का संपर्क शहर से टूट जाता है। यही नहीं नदी के उफान की वजह से लोग जहां के तहां फंस जाते हैं। स्कूल के बच्चों को तो बरसात के दिनों में तीन-तीन माह स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है।
बरसात में नहीं जा पाते स्कूल:बरसात में करीब दो माह के लिए बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं और इससे उनकी पढाई भी प्रभावित होती है, इसके लिए गांव के लोगों ने सरकार को जिम्मेदार मानते हुए गांव के लोगों ने राष्ट्रपति से गुहार लगाई है कि यदि हमारा भविष्य खराब होता है और उन्हे किसी बेहतर शिक्षम संस्थान में प्रवेश नहीं मिलता है तो उन्हे इच्छा मृतु दी जाए, क्योकि पढाई के बिना वैसे ही उनका जीवन खराब हो रहा है।
एक पुल भी नहीं बनवा पाई यहां सरकार: हल्द्वानी शहर से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर बसा नकायल गांव आज भी मूलभूत चीजों के लिए तरस रहा है। इस गांव के पचास फीसदी लोग भारत माता की रक्षा के लिए या तो सरहदों पर तैनात हैं या फिर सेना से रिटायर्ड हो गए हैं। बावजूद इसके गांव की बदहाल हालत देखने के बाद भी लोगों की उम्मीद अभीतक खत्म नहीं हुई है। ऐसा नहीं की गांव में कोई मंत्री या अधिकारी नहीं पंहुचा हो और सड़क और पुल का शिलान्यास ना किया गया हो बावजूद इस के आज भी गांव की तस्वीर 1952 की तरह जस की तस बनी हुई है।
अधिकारी भी मानते है की नकायल गांव के ग्रामीणों की समस्या गंभीर है, क्योंकि बरसात के दिनों में किसी भी गांव का जिला मुख्यालय या आस-पास के नजदीकी शहर से संपर्क कटना किसी भयावह हालातों से कम नहीं है।
बता दें कि नकायल गांव कोई ऐसा पहला गांव नहीं है जो कई दशकों से सड़क और पुल के लिए तरस रहा हो। उत्तराखण्ड के सैकड़ों गांव ऐसे हैं जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं लेकिन सरकार के पास सिवाय आश्वासनों के अलावा कुछ और नहीं है।