प्राचार्य पद के लिए यूजीसी नेट पास करना अनिवार्य

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शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े संस्थान में प्राचार्य पद पर आसीन होने का सपना रखने वालों को यूजीसी की राष्ट्रीयता पात्रता परीक्षा (नेट) परीक्षा पास करनी ही होगी। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने रेगुलेशन 2014 में परिवर्तन कर प्राचार्य पद के लिए यूजीसी नेट को अनिवार्य कर दिया है।

बीते कुछ वक्त में संस्थानों की शिक्षा प्रणाली का स्तर और गुणवत्ता में गिरावट का प्रमुख कारण उन संस्थानों में प्रशिक्षित शिक्षकों और प्राचार्य पदों पर अनुभवी व्यक्ति का अभाव होना है। इसी को देखते हुए एनसीटीई ने अधिसूचना जारी कर प्राचार्य पद पर नियुक्ति के लिए एक नई शर्त जोड़ी हैं जिससे शिक्षा महाविद्यालयों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। नए मापदंड के मुताबिक अब प्राचार्य बनने के लिए पीएचडी व शिक्षा में पांच साल के अनुभव के साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पास करना अनिवार्य है। परिष्द ने न्यूनतम मानक को ध्यान में रखते हुए साल 2009 के अनुसार पीएचडी उपाधि ग्रहण करने वालों को इस शर्त से छूट की बात भी कही है।

एनसीटीई ने प्राचार्य पद में नियुक्ति के लिए एक ओर जहां यूजीसी नेट को अनिवार्य किया है वहीं आठ साल के अनुभव को घटाकर पांच साल कर दिया है। उत्तराखंड की बात करें तो पूरे प्रदेश में कॉलेजों में प्राचार्य पद खाली पड़े हैं। कई संस्थानों का जिम्मा प्रभारी प्राचार्य संभाल रहे हैं। नए नियम से गुणवतता में सुधार तो होगा ही साथ ही नई पीढ़ी के अनुभवी और योग्य शिक्षकोंं को बेहतर विकल्प भी मिलेंगे।

एसोसिएशन आॅफ सेल्फ फाइनेंस इंस्टीट्यूट्स के अध्यक्ष सुनील अग्रवाल का कहना है कि परिष्द का यह फैसला शिक्षा की बुणवत्ता केा बढ़ाने का कार्य करेगा। उन्होंने बताया कि बीएड संस्थानों की बात की जाए तो फिलहाल प्रदेश में 110 प्राइवेट, 16 सेल्फ फाइनेंस सरकारी संस्थान और तकरीबन 12 सरकारी बीएड संस्थान हैं। इसके अलावा उच्च शिक्षा के 450 संस्थान होने के बाद भी गुणवत्ता के मानकों पर प्रदेश फेल हो रहा था। यह नियम सभी संस्थानों पर लागू होने से वहां योग्य और अनुभवी शिक्षक और प्राचार्य छात्रों का मार्गदर्शन करने का कार्य करेंगे। उन्होंने बताया कि प्राचार्य नियुक्ति को लेकर यूजीसी नेट को अनिवार्य करना अच्छी पहल है।

इसपर दून यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. वीके जैन का कहना है कि ‘प्रदेश के अधिकांश संस्थाओं में प्राचार्य के पद रिक्त हैं। पीएचडी की अनिवार्यता के कारण दिक्कत होती थी, अब नेट के चलते रास्ता कठिन भी होगा। लेकिन, इसके दूसरे पहलू पर गौर करें तो इससे शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक असर भी दिखाई देंगे।’