श्यामपुर कोतवाली क्षेत्र में वन गुर्जर जान जोखिम में डाल गंगा पार करने को मजबूर हैं। दो जून की रोटी के लिए गंगा पार से वन गुर्जर, रोजाना दूध लेकर गाजीवाली और श्यामपुर आते हैं। गंगा नदी के उफान पर होने से वन गुर्जरों को जान जोखिम में डालकर दूध देने जाना पड़ा।
एक गुर्जर तो गंगा के उफान में फंसकर रह गया और जैसे-तैसे जान बच सकी। हरिद्वार वन प्रभाग की श्यामपुर रेंज से सैकड़ों वन गुर्जरों को विस्थापित किया गया है, लेकिन सरकार की लेटलतीफी के कारण अभी भी सैकड़ों वन गुर्जर परिवार जंगल में ही रहते हैं। कुछ वन गुर्जर अपने परिवारों के साथ पुराने गुरुकुल कांगड़ी गंगा पार रहते हैं। वन गुर्जरों के छह परिवारों के मुखिया रोजाना गंगा पार से दूध से भरे गैलन लेकर ट्यूब के सहारे इस पार आने को मजबूर हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश के चलते बुधवार को गंगा का जलस्तर 292.60 पर पहुंच गया था, जो चेतावनी के निशान से सिर्फ 60 मीटर नीचे बह रही थी, मगर उसके बाद भी वन गुर्जर गंगा पार आने को मजबूर हैं। बुधवार सुबह नौ बजे एक वन गुर्जर दूध के भरे गैलन लेकर ट्यूब के सहारे गंगा पार कर रहा था, लेकिन तेज बहाव से उसका पांव फिसल गया। गाजीवाली से पुराने कांगड़ी भवन तक पहुंचने में उसे कई बार जिंदगी और मौत के बीच जूझना पड़ा, और किसी तरह जान बच सकी। गंगा पार रह रहे सद्दीक और फिरोज ने बताया कि उनके परिवार का गुजर-बसर दूध बेचकर ही होता है। अगर हम दूध नहीं बेचेंगे तो हमारे बच्चे भूखे मर जाएंगे। ट्यूब के सहारे ही वो अपने जानवरों के लिए चोकर और अपने लिए राशन भी ले जाते हैं।
बताया कि अगर सरकार उनको भी विस्थापित कर दें, तो उन्हें अपने जीवन से खिलवाड़ नहीं करना पड़ेगा। बताया कि वो रोजाना दो बार सुबह और दो बार शाम को गंगा पार करते हैं। वहीं, वन क्षेत्राधिकारी श्यामपुर वाई.एस. राठौर ने कहा कि गुर्जरों के विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। विस्थापन से बचे हुए गुर्जर परिवारों की रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। शासन के आदेश के बाद उन्हें भी विस्थापित कर दिया जाएगा।