महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती इन दो “भुलियों” की कहानी

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दुनिया में बहुत कम लोगों को मौका मिलता है कि उनकी बनाई हुई रचना को उन्हीं के पसंदीदा कलाकार के जीवन में जगह मिले। लेकिन देहरादून की दो तान्याओं के साथ ये सुखद सपना सच हो गया। तान्या कोटनाला औऱ तान्या सिंह का ब्रेन चाइल्ड है “भुली” नाम का चित्रों का संग्रह।

एक ही नाम शेयर करने वाली देहारदून में पली बड़ी इन दोनों लड़कियों के बीच नाम के साथ-साथ देहरादून भी एक काॅमन फैक्टर है। हांलाकि दोनों की पढ़ाई की पृष्ठभूमि अलग है, पर अपनी जन्म भूमि के लिये कुछ खास करने की चाह दोनों में ही थी औऱ इसी चाह ने इरादा बन कर “भुली” को जन्म दिया।

न्यूजपोस्ट से बात करते हुए तान्या कोटनाला बताती हैं कि, “2015 में निफ्ट से पढ़ाई पूरी कर, जब में देहरादून आई तो मैने देखा कि उत्तराखंड में संस्कृति की झलक के पास वे प्लाटफाॅर्म नही है जो होना चाहिये। हमारे लिये ‘भुली’ एक सोच है, एक तरीका जिससे पहाड़ की संस्कृती और कला को देश दुनिया के नक्शे पर पहुंचाया जा सके।”

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शुरुआती दिनों में तानया काॅलेज के रिसर्च पेपरों के लिये इलस्ट्रेशन बनाती थी। इसी दौरान उन्होंने लाल और नीले रंग मे एक पहाड़ी लड़की का चित्र बनाया और यहीं से शुरुआत हुई भुली की। ‘भुली’ का अर्थ, पहाड़ी बोली में छोटी बहन होता है।

वहीं इस जोड़ी की दूसरी सदस्य हैं तान्या सिंह। पेशे से न्यूट्रीशनिस्ट तान्या ने महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किया है। भुली के चित्रों को तान्या कि किताब में भी देखा जा सकता है, तान्या कहती हैं कि, “इस समय हमारा फोकस महिला विकास, महिला स्वास्थ्य और महिला उद्यमियों को बढावा देने पर है। इसके साथ-साथ हम ऐसे प्रोडक्ट तैयार करना चाहते हैं जो बाजार में सही फिट बैठे। हमारा मकसद ऐसा कंटेंट तैयार करना है जिससे पहाड़ के लोगों को और खासतौर पर महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जा सके”

भले ही भुली कुछ महीनों पुराना ही हो, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इसने अपनी पहचान बनाई है। हाल ही में एमस्टर्ड्रम के प्रसिद्ध मैडम टुसेड वैक्स संग्रहालय में मशहूर हाॅलिवुड अभिनेता जार्ज क्लूनी के पुतले के हाथों में भुली की कला ने जगह बनाई। उत्तराखंड में पलायन को लेकर लंबे समय से बहस चली आ रही है। चुनावों में ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बनता है और चुनावों के बाद ये महज सोशल मीडिया और बहस का मुद्दा बनकर रह जाता है। अगर सही मायने में पलायन को रोकना है तो राज्य के युवाओं को आगे आकर और कई ‘भुली’ जैसे माॅडल तैयार करने होंगे जिससे पहाड़ों को एक अलग पहचान मिल सके।