इजरायल की मदद से उत्तराखंड में बनेंगे चार ”हाईड्रोपोनिक फार्म”

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सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि उत्तराखंड में चार हाइड्रोपोनिक खेतों का विकास होगा – जो कि ‘कमलफोनिक’ के रूप में जाना जाता है।इजरायल की मदद से यह प्रयोगात्मक आधार पर शुरु किया जाएगा, इससे पहाड़ी राज्य में एक्वा खेती को बढ़ावा मिलेगा।

हाइड्रोपोनिक खेती मिट्टी के उपयोग के बिना पानी में उगने वाले फसल को कहते है। महाराज ने कहा, “हम इसे कमलफोनीक खेती कहेंगे क्योंकि यह वैसा ही होगा जिस तरह कमल पानी में स्वाभाविक रूप से उगता है।” उन्होंने कहा कि, “सिंचाई विभाग ने देहरादून, पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा जिले में चार खेतों के लिए बुनियादी ढांचा बनाने के लिए काम शुरू भी कर दिया है।”

सतपाल महाराज ने बताया कि यह खेत इजरायल के कृषि विशेषज्ञों की सहायता से स्थापित किया जा रहे हैं। ये पूरी तरह से पानी पर निर्भर होने वाली खेती हैं, जिन्हें फसलों के बढ़ने के लिए जमीन या मिट्टी की जरुरत नहीं होगी। “यह पहाड़ी किसानों को मात्रा और गुणवत्ता के मामले में बेहतर उपज प्राप्त करने में मदद कर सकता है। उन्होंने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में हमारे पास छोटी-छोटी जमीन होल्डिंग है और हाईड्रोपोनिक खेती किसानों को हर सीढ़ी के निचले हिस्से में पानी को स्टोर करने की सुविधा के साथ अच्छी उपज की गारंटी देंगे।

मंत्री ने कहा कि सिंचाई विभाग कृषि और बागवानी विभागों की मदद से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हाइड्रोपोनिक खेतों का निर्माण और रखरखाव करेगा, विशेष रूप से  पहाडी क्षेत्रों में जहां खेत का आकार छोटा और प्रति इकाई क्षेत्र उपज कम थी।इस नए तकनीक से पहाड़ी क्षेत्र में खेती के नए पैटर्न को बढ़ावा भी मिलेगा।

सिंचाई सचिव आनंद बर्धन ने कहा: “यह (नई प्रणाली) राज्य में खेती के नए तरीकों के लिए नए आयाम ला सकता है और कई तरह से किसानों की कमाई में बढ़ावा कर सकता है।”

हाइड्रोपोनिक खेती इजरायल की खेती टेक्नीक है जो पूरी तरह से पानी पर निर्भर करता है।इसमें पानी को खेत के चारों तरफ घुमाया जाता है जिसमें सारी फसल की जरुरत वाले सभी माइक्रो और मेक्रो पोषक तत्व होते हैं।

इस तरह के प्रयोग से ना केवल किसानों को नए तरह की खेती का ज्ञान होगा बल्कि बरसात के दिनों में होने वाली अथाह बारिक के पानी को सुरक्षित रखकर उसका प्रयोग किया जा सकेगा।