नीलकंठ कावड़ यात्रा का अंतिम पड़ाव

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सावन के महीने में शिवरात्रि मनो शिवभक्तों के लिए सोने पे सुहागा जैसा होता है। चथुर्ठमास के चलते शिवभक्त अपने आराध्य को जलाभिषेक करके प्रसन्न करने में जुटे है और ऋषिकेश के नीलकंठ महादेव सबकी मनोकामनायों को पूर्ण करने में लगे हुए है।

कहते है उत्तराखंड के कण कण में भगवन शिव का वास है। ऐसे में सावन का महीना आते ही शिवभक्त कावड़ उठा कर श्री नीलकंठ महादेव के दर्शन के लिए घरों से निलकते है। ये शिव भक्त गंगा जल लेकर अपने आराध्य का जलाभिषेक कर के पुण्य की प्राप्ति करते है, हर साल इस कावड़ यात्रा में सावन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते है।

कहते है चथुर्ठमास में शिव परिवार की पूजा का विशेष महत्व होता है। भगवान भोले भी जलाभिषेक करने से अपने भक्तों की सभी मुरादों को पूरा करते है , यही कारण है बड़ी संख्या में श्रद्धालु नीलकंठ धाम पहुच रहे है और भक्तों का उत्साह बीते 12 दिनों में 30 लाख से उपर पहुच चूका है। नीलकंठ कावड यात्रा में हर साल लाखों की संख्या में कावड़िये हरिद्वार-ऋषिकेश पहुचते है, ऐसे मे व्यवस्थायों को बनाये रखना प्रशाशन के लिए किसी चुनोती से कम नहीं होता।

नीलकंठ कावड़ यात्रा में सावन की शिवरात्रि का एहम रोल है क्योंकि इस दिन जलाभिषेक करके कावड़िये अपने अपने शहरों, कज्बों की तरफ वापस लौटने लगते है और अपने अपने शिवलियों में जाकर पित्तरों के नाम पर जलाभिषेक करते है। ये परंपरा सालों से चली आ रही है इसे नीलकंठ कावड़ यात्रा का अंतिम पड़ाव भी कहते है