उत्तराखंड में रंगमंच की एक आधार शिला, नाट्य गुरु श्रीश डोभाल

    0
    1540

    कहते है अगर जीवन में समाज की बेहतरी के लिए कोई उदेश्य न हो तो वो जिंदगी निर्थक और बेजान सी हो जाती है, लेकिन उदेश्य को लेकर आगे बढ़ते रहना क्या होता है और उस उदेश्य की पूर्ति के जीवन – घरबार, दो टाइम की रोटी और चमचमाता कॅरियर सब दाँव पर लगा कर कंधे पर बैग, बैग में 2 कपडे और एक शहर से दूसरे शहर की डगर भरते जीते जागते आदमी की मिसाल है नाट्य गुरु श्रीश डोभाल जिनका हाथ लगते ही या यू कहे जिनकी कार्यशाला में जाते ही देश भर के कई युवा-छात्र -पत्रकार और अध्यापक तप कर सोना बन जाते है और अपने-अपने छेत्र में एक नयी पहचान बनाते है।

    ऐसे है साहित्य की आधार शिला पर अनेक कलाओ की संविंत विधा रंगमंच के लिए समर्पित रंगकर्मी श्रीश डोभाल जिनका जन्म ऋषिकेश में हुआ, आरंभिक शिक्षा चम्बा, टिहरी गढ़वाल के बाद देहरादून से बी.एस.सी. करके सरकारी नौकरी छोड़ कर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यानि की एन.एस.डी  से नाट्य व रंगमंच में तीन वर्षीय गहन स्नातकोत्तर प्रशिक्षण अभिनय विशेज्ञता के साथ 1984 में पूरा किया।

    ये उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन था, हर कोई एन.एस डी से निकल कर मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में अपना भाग्य आजमाने और बेहतर कैरियर के लिए जा रहा था, ऐसे में श्रीश डोभाल ने रंगमंच के प्रति अपनी प्रतिब्धता को घ्यान में रख कर उत्तराखंड में नए रंगमंच को जन्म दिया। उसी वर्ष,1984 में जब उत्तराखंड अविभाजित उत्तरप्रदेश का अंग था यहाँ के उन प्रमुख स्थानों पर प्रशिक्षण शिविर स्थानीय कला व साहित्य प्रेमियों के सहयोग से संचालित किया और उत्तराखंड में रंगमंच को आधुनिक शैली व तकनीक से विकसित किया।

    shirish dobhal

    क्रमश:उत्तरकाशी ,कोटद्वार ,टिहरी, गोपेश्वर  और श्रीनगर में उत्साही युवाओ, प्राथमिक से लेकर महाविद्यालयों तक के अध्यापको, छात्र-छात्राओं को सार्थक रंगमंच की ओर रुझान बढ़ाते हुए नब्बे के दशक में अनेक प्रबुद्ध व्यक्तियों को रंग आंदोलन से जोड़ कर उत्तराखंड में एक नयी विधा को जन्म दिया। आज श्रीश डोभाल के जिंदगी भर के प्रयास की बदौलत उत्तराखंड के सभी जिलों में शैलनट की स्वतंत्र इकाई स्थापित की और उत्तराखंड में कला के छेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, शैलनट के इस नाट्य गुरु की पाठशाला से निकले और सहयोगी रहे उत्तराखंड के कुछ प्रबुद्ध नागरिक मंत्री प्रसाद नैथानी, सुरेंद्र सिंह रावत, कमला राम नौटियाल, प्रो प्रभात उप्रेती, डॉ महावीर प्रसाद गैरोला, डा सुधा आत्रे, प्रो चन्द्रप्रकाश बड़थ्वाल [पूर्व कुलपति ], सत्यप्रकाश हिंदवाण, डॉ नन्द किशोर हटवाल, प्रो डी आर पुरोहित, एसपी ममगाई, डा राकेश भट्ट, डा डीएन भट्ट ,दिनेश उनियाल ,अनुराग वर्मा जैसे उत्तराखंड के कई नाम है जो हर छेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे है।

    श्रीश डोभाल ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को कई डाक्यूमेंट्री के जरिये सजोये रखा है, साथ ही 15 भाषाओ में नाटकों का निदेशन, 11 नाटकों का अनुवाद और गढ़वाली से अंग्रेजी महाभारत पर आधारित गरुड़ व्यूह का लेखन के साथ-साथ 35 अधिक निर्देशकों के साथ अभिनय, 6 निदेशित नाटकों की अंतराष्ट्रीय समारोह में सफल मंचन किया है, 20 टीवी धारावाहिक, कई टेली -फिल्मो में अभिनय भी किया हैं। श्रीश डोभाल ने प्रख्यात निर्देशकों के साथ तीन राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त फिल्मों में अभिनय तो किया है लेकिन अाज श्रीश डोभाल उत्तराखंड सहित कई राज्यों में नाट्य विधा के प्रसार के चलते कई पुरुस्कारों से सम्मानित भी हुये है।

    इस नाट्य गुरु का पूरा जीवन रगमंच को समर्पित है। इनकी पाठशाला से निकले कई शिष्य देश भर में इस विधा को आगे ले जाने में लगे है।