बिजली चोरी रोकने के लिए उत्तराखंड अपनाएगा यूपी का फार्मूला

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    सारे पैतरे अपनाने के बाद उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) बिजली चोरी रोकने के लिए उत्तर प्रदेश का फार्मुला अपनाएगा। साथ ही यूपीसीएल की सतर्कता इकाई यानी विजीलेंस विंग की मॉनिटरिंग आइजी स्तर के अधिकारी करेंगे। विजीलेंस को मजबूत बनाने के लिए 12 पुरुष व चार महिला कांस्टेबलों की भी नियुक्ति की जाएगी। यह निर्देश सचिव ऊर्जा ने यूपीसीएल प्रबंधन को दिए हैं और प्रबंधन ने इस पर काम करना शुरू कर दिया है।

    दरअसल, यूपीसीएल का लाइन लॉस 17.25 फीसद है, जबकि उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) का लाइन लॉस 35 फीसद से ज्यादा। लॉइन में अधिकांश हिस्सा बिजली चोरी का होता है और कुछ तकनीकी। वहीं, उत्तराखंड की बिजली मांग जहां 12 हजार मिलियन यूनिट से ज्यादा है तो उत्तर प्रदेश की बिजली मांग करीब एक लाख मिलियन यूनिट है। ऐसे में सचिव ऊर्जा का मानना है कि उत्तर प्रदेश में शायद बिजली चोरी पर लगाम कसने के लिए किसी बेहतर प्लान का इस्तेमाल किया जा रहा हो।

    यूपीसीएल प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा ने बताया कि उत्तर प्रदेश की दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के प्रबंध निदेशक एसके वर्मा से बात हो गई है। वह विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराएंगे कि उनके यहां बिजली चोरी रोकने और लाइन लॉस कम करने के लिए किसी प्लान पर काम किया जा रहा है। जल्द ही एक टीम पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के मेरठ स्थित मुख्यालय में भेजी जाएगी।

    उत्तर प्रदेश की अन्य दोनों बिजली वितरण कंपनियों से भी इस संबंध में जानकारी ली जाएगी। साथ ही यूपीसीएल अन्य राज्यों की उन बिजली वितरण कंपनियों की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी जुटाएगा, जहां लाइन लॉस सबसे कम है। इसके बाद एक प्रभावी कार्ययोजना बनाई जाएगी।

    सचिव ऊर्जा ने हर जोन में सतर्कता इकाई की मॉनिटरिंग करने की जिम्मेदारी अधीक्षण अभियंता को देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कहा कि मुख्यालय स्तर पर भी मुख्य अभियंता स्तर का अधिकारी मॉनिटरिंग करे। प्रदेश में यूपीसीएल के चार जोन हैं।

     प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा ने बताया कि सतर्कता इकाई को मजबूत करने के लिए इसका पुनर्गठन किया जाएगा। इस संबंध में प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिसे आगामी निदेशक मंडल की बैठक से पास कराने के बाद शासन को प्रेषित किया जाएगा। दरअसल, 2003 में यूपीसीएल निदेशक मंडल की बैठक से प्रस्ताव पास हुआ था, जिसमें डीआइजी स्तर पर मॉनिटरिंग की बात थी। लेकिन, यह प्रस्ताव धरातल पर नहीं आ सका।

     वर्तमान में सालाना 2205 मिलियन यूनिट बिजली लाइन लॉस के रूप में बर्बाद हो रही है। इस तरह निगम को करीब छह अरब रुपये का झटका लग रहा है।