फिल्म समीक्षा-भूमि: कमजोर कहानी, कमजोर निर्देशन का शिकार 

0
708

संजय दत्त की वापसी वाली फिल्म ‘भूमि’ पहली नजर में खोदा पहाड़ निकली चूहिया वाली कहावत को चरितार्थ करती है। इस फिल्म में न तो कहानी में दम है और न ही पटकथा में। निर्देशक ओमांग कुमार ने 2017 में 70 के दशक के रिवेंज ड्रामे की कहानी को उन मसालों के साथ रख दिया, जो अब किसी काम के नहीं रहे है।

कहानी आगरा के पास धौलपुर में रहने वाले अरुण (संजय दत्त) की है, जो अपनी बेटी भूमि (अदिति राव हैदरी) के साथ रहता है। भूमि की शादी उसकी पसंद के लड़के से होने वाली है। वहीं एक और लड़का रहता है, जो भूमि से एकतरफा प्यार करता है। भूमि ने उसके प्यार को ठुकरा दिया, तो इलाके के दबंग धौली (शरद केलकर) के साथ मिलकर भूमि की इज्जत लूट ली जाती है। पुलिस और अदालत से इंसाफ नहीं मिलता, तो अपनी बेटी के दुश्मनों से निपटने के लिए पिता खुद मैदान संभालता है और गुनाहगारों को सजा देता है।

ओमांग कुमार ने इससे पहले प्रियंका चोपड़ा के साथ मैरीकाम और ऐश्वर्या राय के साथ सर्बजीत फिल्में बनाई है। भूमि हर लिहाज से उनकी सबसे कमजोर फिल्म है। ओमांग कुमार और उनके लेखकों की टीम ने इतनी लचर कहानी का ताना बाना बुना, जिसमें कुछ भी अच्छा नही रहा। भूमि जैसा रिवेंज ड्रामा 60-70 के दशक के सिनेमा का हिस्सा हुआ करता था। इस दौर में सब कुछ बनावटी लगता है। कमजोर कहानी, बेहद लुलपुंज स्क्रीनप्ले और ओमांग कुमार के गड़बड़ निर्देशन ने इस फिल्म को खराब करने में जमकर योगदान दिया। इस कहानी के सारे किरदार ही इतने कमजोर हैं कि फिल्म कहीं नहीं ठहरती। फिल्म की घटनाओं के बारे में पहले से अंदाज लग जाता है, क्योंकि कुछ नयापन नही है। वही इलाके के दबंग, वही कमजोर अदालल, नक्कारा पुलिस, लांछन लगाने वाले पड़ोसियों जैसे सभी किरदार कमजोर हैं। फिल्म में गति नहीं है। फिल्म के शुरु होने के दस मिनट बाद इंटरवल का लंबा इंतजार होता है और इंटरवल के 5 मिनट बाद दी एंड का इंतजार शुरु हो जाता है।

जब फिल्म का स्ट्रेक्चर ही इतना कमजोर हो, तो इसमें संजय दत्त ही क्या करेंगे। उन्होंने अपने बेहद कमजोर किरदार को इमोशन और एक्शन सीनों से ताकत देने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। उनकी बेटी के रोल में अदिति का किरदार भी कमजोर रहा है। इतनी कमजोर फिल्म से वापसी संजय दत्त के परदे पर लौटने का इंतजार करने वालों को मायूस करेगी। अदिति की परफारमेंस भी खास नहीं। मेन विलेन के रोल में शरद केलकर बेहद लाउड हैं, तो अदिति के मंगेतर के रोल में सिद्धार्थ को तो गायब ही कर दिया गया। संजय के दोस्त के किरदार में शेखर सुमन भी बेदम नजर आए।

अगर इस फिल्म में कुछ अच्छा है, तो वो है एक्शन। गीत-संगीत के मामले में फिल्म साधारण है। सनी लियोनी का आइटम सांग भी अच्छा नहीं है। एडीटिंग कमजोर है। कैमरावर्क अच्छा रहा है। आगरा और आसपास की लोकेशन अच्छी हैं।

भूमि की सबसे बड़ी उम्मीद ये थी कि कई सालों बाद संजय दत्त परदे पर वापसी कर रहे हैं। इस उम्मीद पर ये फिल्म कहीं से खरी नहीं उतरती। छोटे शहरों और कस्बों के सिंगल थिएटरों में शायद कुछ दर्शकों को ये अच्छी लगे, लेकिन आम दर्शकों को ये मायूस करने वाली फिल्म है, जो बाक्स आफिस पर घाटे का सौदा साबित होगी और संजय दत्त की वापसी का ये सफर नाकामयाबी के साथ शुरु होगा।