दुबई में रहने वाले उत्तराखंडी दीप नेगी कर रहे मातृभाषा के लिए लड़ाई

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दुबई में बैठे भी कैसे एक उत्तराखंड निवासी यहां की भाषा और संस्कृति को संजोने की कोशिश में लगा है, इसका जीता जागता उदाहरण हैं 34 साल के दीप नेगी जोकि सुनार गांव, चंबा,जिला टिहरी के निवासी हैं।

दीप हमेशा से ही अपनी जन्मभूमि और खास तौर से गढ़वाली होने पर गर्व महसूस करते है। टीम न्यूज़पोस्ट से बातचीत में दीप बताते हैं कि, “जब घर से दूर हुआ तो वहां की हर चीज आपको याद आती है।आपको वहां का खाना,भाषा,गीत-संगीत,संस्कृति सब में घर की झलक दिखती है, लेकिन दुख तब होता है जब वहां पर रह रहे लोग अपनी संस्कृति को भूलते जाते हैं।इसी सोच के साथ दीप ने ”सोच” संस्थान की शुरुआत की और इसके माध्यम से अपनी जन्मभूमि को नए आयाम पर लेकर जा रहे हैं।

दरअसल दीप ने अपनी मातृ भाषा के प्रचार के लिए, ”आईवीआर यानि की इंटरेक्टिव वाईस रिर्काडिंग के लिये कुमाउंनी व गढ़वाली भाषा का pryog करने के लिये सरकार से विनती कर ek proposal दिया है जोकि उत्तराखंड की भाषाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगा। unkee is पहल को जहा आम जनता ने सराहाया है वहीं इसके लिए वह सतपाल महाराज और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिलना चाह रहे थे लेकिन मिल नहीं पाये। लेकिन हार ना मानते हुए दीप ने चिट्ठी के माध्यम से आई.वी.आर के इस सुझाव को सतपाल महाराज तक पहुंचाया और मंत्री जी ने इस पर विचार करने की बात भी कही।

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दीप बताते हैं कि, “मुझे इस पहल में बहुत सारे लोगों का समर्थन मिला, सराहना भी मिली लेकिन पूरा राज्य जिस हिसाब से भाषा-भाषा करता है, उस हिसाब से समाज के उन लोगों को समर्थन नहीं मिला जो दिन रात गढ़वाली-कुमाउनी करते हैं।”

जब पूरे देश में सब राज्यों के अलग-अलग आई.वी.आर हैं तो उत्तराखंड में क्यों नहीं?? अपने देश से दूर बैठे एक बेटे का यह लगाव अपनी मातृ भाषा के लिए एक छोटी सी पहल है जिसे सरकार को जल्द ही अमल करना चाहिए।

आपको बतादें कि दीप नेगी एक फेसबुक पेज ”जंगली चैनल उत्तराखंड वर्ल्ड वाईड” के माध्यम से उत्तराखंड से जुड़ी बाते लोगों तक पहुचाते हैं। उनका यह जज्बा अपनी मातृभूमि और भाषा के लिए लगाव देख कर लगता है कि काश यह जज्बा हमारे राजनितिज्ञ में भी होता तो शायद आज गढ़वाली और कुमाउनी संस्कति समाप्ति के कगार पर नहीं होती।