दीपावली की चकाचौंध में खो गई बग्वाल

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गोपेश्वर,  दीपावली की चकाचौंध में पहाड़ में मनायी जाने वाली बग्वाळ जाने कहां खो गई। नये दौर में सब कुछ बदला तो पहाड़ों की धरती भी अछूती न रही। मगर संतोष इस बात पर है कि पहाड़ के कुछ इलाकों में आज भी बग्वाळ अपने अतीत की कुछ न कुछ परंपरा जीवित रखे हुए है।

गोपेश्वर अब नगर बन गया है, मगर बग्वाळ को लेकर पुरानी परंपरा अभी भी है। पूरा शहर दीपावली के दिन बिजली की लड़ियों से जगमगाता है, मगर गोपीनाथ मंदिर के शीर्ष पर तेज कलश जलाने की परंपरा अभी भी है। आतिशबाजी को लेकर भले ही नयी बहस छिड़ी हो, मगर चमोली के कई गांवों में अभी भी दीपावली पर भेल्यु खेलने की परंपरा जिंदा है। गोपीनाथ मंदिर और दीपावली का गजब का संबंध है। यहां कभी 64 गांवों के लोग अपनी देहरी पर तब दीपक जलाते थे, जब इस मंदिर के शीर्ष पर तेल कलश जलता और शंख बजाया जाता था।

हालांकि कुछ गांवों ने यह परंपरा विसार दी, मगर गोपेश्वर गांव, पाडुली, पपडियाणा, ग्वीलों, चमडांउ समेत छह गांव के लोग आज भी इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। दीपावली के तीन दिनों के अलग-अलग गांव के लोग अपने-अपने गांव से सरसों के तेल का कलश व नया धान लेकर मंदिर के चौक में पहुंचते है। यहां पर तेल कलश और 501 दीपकों की पूजा होेती है और फिर एक आदमी मंदिर के शीर्ष पर तेल कलश लेकर पहुंचता है। मशाल से उस दीपक को जलाता है और शंख बजाता है, तब गांव के लोग अपने घरों की देहरी पर दीपक जलाते हैं।