बाल विवाह की जंजीरों से मुक्त हो रहा उत्तराखंड

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    देहरादून,  उत्तराखंड का बचपन अब बाल विवाह (14 वर्ष तक की उम्र) की जंजीरों से मुक्ति की तरफ बढ़ रहा है। आंकड़े सुनहरे भविष्य की तरफ इशारा कर रहे हैं। प्रदेश में बाल विवाह के अब महज 0.40 फीसद ही मामले शेष रह गए हैं और पूरे देश में सिर्फ पांच ही राज्य ऐसे हैं, जो उत्तराखंड से बेहतर स्थिति में नजर आते हैं। बाल विवाह की यह स्थिति जनगणना 2011 की है और ऐसी कामना है कि अगली जनगणना में उत्तराखंड में बाल विवाह से मुक्त होगा।

    बाल विवाह के मामले में देश के औसत की बात करें तो यह आंकड़ा है 0.73 फीसद। यानी हम राष्ट्रीय औसत से कहीं बेहतर स्थिति में पहुंच चुके हैं। आर्थिक संसाधनों के मामले में हमसे कहीं आगे महाराष्ट्र व गुजरात जैसे राज्य भी बाल विवाह से मुक्ति की लड़ाई में पीछे चल रहे हैं। हालांकि जनगणना 2011 के अनुसार प्रदेश में अभी भी 14 वर्ष तक की उम्र के 12 हजार 632 बच्चे बाल विवाहित हैं। लिहाजा, प्रयास किए जाने चाहिए कि वर्ष 2021 में जब अगली जनगणना हो तो हम इस कुरीति से पूरी तरह मुक्ति पा लें। तभी सही मायने में बाल दिवस की सार्थकता साबित हो पाएगी।

    बाल विवाह से मुक्ति में आगे राज्य (बाल विवाह के आंकड़े फीसद में)
    मिजोरम, 0.31
    चंढीगढ़, 0.34
    दिल्ली, 3.36
    नागालैंड, 0.38
    केरल, 0.38
    उत्तराखंड, 0.40

    बाल विवाह मुक्ति में पिछड़े राज्य
    महाराष्ट्र, 1.16
    राजस्थान, 1.06
    गोवा, 0.98
    गुजरात, 0.95
    पंजाब, 0.82
    हरियाणा, 0.77