अपने ही चक्रव्यूह में फंसे कांग्रेस और बीजेपी के ‘’वजीर’’

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उत्तराखंड चुनावों में कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही प्रदेश अध्यक्षों के लिये बागी जी का जंजाल बन गये हैं। एक तरफ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय है तो दूसकी तरफ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट है। जी हां पार्टी के वजीर के रुप मे विराजमान इन दोनों ही नेताओं को बागियों ने इनकी विधानसभा क्षेत्र में ही घेर लिया है।

रानीखेत से कांग्रेस के उम्मीदवार कर्ण सिंह महारा अपने आप में एक मजबूत प्रत्याशी है और 2012 के चुनाव में महारा बहुत कम वोटों के अंतर पर चुनाव हारे थे।बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट माहरा से नििपटने की रणनीति बना ही रहे थे कि रानीखेत से निर्दलीय चुनाव लड़ने को तैयार बागी प्रत्याशी प्रमोद नैनवाल ने अजय भट्ट के रास्ते में परेशानियों खड़ी कर दी है। नैनवाल का लंबे समय से रानीखेत की भिखियासैन बैल्ट में सियासी सक्रियता भट्ट के लिए परेशानी का सबब बन चुका है। इसके साथ ही महारा के साथ भट्ट का कांटे का मुकाबला है। 2012 के चुनाव में सिर्फ 78 वोटों से हारे थे महारा।

इधर सहसपुर से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का तो हाल और बुरा लग रहा है। 2012 अपनी पारंपरिक सीट टिहरी से किसोर क्या हारे मानो उनके राजनीतिक करियर पर ही ग्रहण लग गया। मुख्यमंत्री हरीश रावत के निर्दलीय विधायक और मंत्री दिनेश धनै प्रेम के आगे किशोर की एक न चली और उन्हें टिहरी सीट से दूसरी पारी खेलने का मौका नही मिला। इसके साथ ही उनके मना करते रहने के बावजूद उन्हें पार्टी ने सहसपुर सीट से आर्येंद्र शर्मा का टिकट काट उपाध्याय को उम्मीदवार बना दिया। सहसपुर से टिकट न मिलने से नाराज आर्येंद्र शर्मा ने निर्दलीय दावा ठोक कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। सीएम से लेकर पार्टी हाईकमान ने आर्येंद्र को मनाने की कोशिश की लेकिन आर्येंद्र ने अपना फैसला नहीं बदला। किशोर उपाध्याय के सामने पहले से भाजपा विधायक सहदेव पुंडीर तो हैं ही, साथ ही कांग्रेस से खफा आर्येंद्र भी किशोर की परेशानी का सबब बन चुके हैं।

ये दोनों ही नेता राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं लेकिन समय बहुत बलवान होता है। एक तरफ सारी पार्टी को चुनावों में ले जाने का बड़ा जिम्मा प्रदेश अध्यक्ष के उपर होतै है वहीं खुद उनकी ही सीट अगर खतरे में दिख रही हो तो इसे विडंबना ही कहेंगे।