देहरादून। विकास और पर्यावरण में संतुलन स्थापित करना होगा। सस्टेनेबल डेवलपमेंट की अवधारणा को अपनाना होगा। ऐसी नीति अपनानी होगी जिससे हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आधारभूत आवश्यकताएं भी पूरी हों और पर्यावरण व जैव विविधता का संरक्षण भी सुनिश्चित हो। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय द्वारा दून विश्वविद्यालय में ‘हिमालयी क्षेत्रों में सस्टेनेबल डवलपमेंट की चुनौतियां’ विषय पर यह बात कही। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण में शोध व नवाचारों को बढ़ावा देने की भी जरूरत बताई। 29 से एक दिसंबर तक चलने वाली अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में देश दुनिया के विशेषज्ञ अपने विचार रखेंगे।
दून विश्वविद्यालय में हिमालयी पर्यावरण और विकास को लेकर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होने जा रहा है। जिसमें हिमालय के विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहे दुनियाभर के विद्वानों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का शुभारंभ राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पॉल ने किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि हिमालय केवल एक भू-स्थलाकृति ही नहीं है बल्कि यह मानव सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र भी है। यहां हमारी सनातन धर्म व संस्कृति की धारा सदियों से प्रवाहित होती रही है। हिमालय का अध्ययन केवल एक भौगोलिक इकाई के वैज्ञानिक विश्लेषण तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है। हिमालय समृद्ध भारतीय संस्कृति की आत्मा है। राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड एक प्रमुख हिमालयी राज्य है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव उत्तराखंड में भी देखने को मिल रहा है। हर साल बादल फटने, भूस्खलन जैसी दैवीय आपदाएं की घटनाएं हो रही हैं। अगर हमें हिमालय, यहां के वनों, नदियों, जीव जंतुओं, जैव विविधता की रक्षा करनी है तो स्थानीय लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन बड़ी समस्या है। राज्य सरकार ने महत्वपूर्ण पहल करते हुए पौड़ी में पलायन आयोग स्थापित किया है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने पर विशेष ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में ज्ञान का सृजन होता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस तीन दिवसीय सेमीनार में वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के गम्भीर मंथन से कुछ ठोस निष्कर्ष अवश्य निकलेंगे जो कि नीति निर्धारण में सहायक होंगे।
केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा ने कहा कि ऐसी तकनीक के विकास पर ध्यान देना चाहिए जिससे दैवीय आपदाओं का कुछ समय पहले पूर्वानुमान लगाया जा सके। विकास व पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हैं। केंद्र सरकार हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण व स्थानीय लोगों की विकास की आवश्यकता को पूरा करने के लिए गम्भीर है। केंद्र सरकार ने उच्च हिमालयी अध्ययन केंद्र खोलने की आवश्यकता महसूस करते हुए जीबीपंत हिमालयी पर्यावरण व विकास संस्थान को जीबीपंत हिमालयी पर्यावरण व स्थायी विकास के राष्ट्रीय संस्थान के रूप में अपग्रेड किया है।
सेमीनार के उद्घाटन के अवसर पर विधायक दिलीप सिंह रावत, अपर मुख्य सचिव डाॅ. रणवीर सिंह, सचिव रविनाथ रमन, विज्ञान व तकनीक विभाग, भारत सरकार से आए वैज्ञानिक डाॅ. अखिलेश गुप्ता, श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. यूएस रावत, दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. कुसुम अरूणाचलम सहित अन्य गणमान्य उपस्थित थे।