गृहणी की सूझबूझ और समझ को प्रस्तुत करता नाटक ‘घर के लाज’

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भोपाल, मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में प्रत्येक शुक्रवार शाम को आयोजित नवीन रंग प्रयोगों की श्रृंखला ‘अभिनयन’ के अंतर्गत नाटक ‘घर के लाज’ का मंचन हुआ। छत्तीसगढ़ी पृष्ठभूमि के इस नाटक का मंचन मनहरण गंधर्व के निर्देशन में ‘संगम नाट्य समिति बिलासपुर (छ.ग.) के कलाकारों द्वारा किया गया।

नाटक में बड़ी खूबसूरती से परिवार के विभिन्न पहलुओं को दिखाया गया है। नाटक के केंद्र में लक्ष्मी है। शादी के कुछ समय के बाद लक्ष्मीं को बच्चा न होने की वजह से, उसकी सास उसे तंग करती है, रोज ताने भी मारती है। एक दिन लक्ष्मी की सास अपने बेटे से कह कर लक्ष्मी को जंगल में छुड़वा देती है। जंगल में भटकते हुए उसकी मुलाकात गाँव के कोतवाल से होती है, जो उसे वापस गाँव में लाता है। कोतवाल गाँव में पंचायत बुलाता है और लक्ष्मी के साथ हो रहे अन्याय को पंचों के सामने रखता है। लेकिन अपने घर की लाज(इज्ज़त) बचाने के लिए लक्ष्मी पंचों के सामने झूठ बोलती है, अपनी सास और पति की गलती छुपा लेती है। यह देख घरवालों को अपने किये पर पछतावा होता है। वह लक्ष्मी से माफ़ी मांगते हैं और उसे वापस घर ले आते हैं।
नाटक में छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा की परम्परा के अनुसार महिलाओं का किरदार भी लडक़ों ने ही निभाया। छत्तीसगढ़ी गानों का प्रयोग करते हुए नाटक को विस्तार दिया गया। यह नाटक अपनी बात रखने और दर्शकों को बांधे रखने में सार्थक रूप से सफल भी रहा। नाटक की कहानी यूँ तो पुरुष प्रधान समाज की शोषणकारी प्रवृतियों, स्त्रियों के साथ हो रहे अत्याचार, उन पर होने वाली शारीरिक और मानसिक प्रताड़ऩा आदि को दर्शाता है।

मनहरण गन्धर्व हिंदुस्तान के लगभग सभी बड़े महोत्सवों में नया थिएटर के माध्यम से प्रस्तुतियाँ दे चुके हैं और इन्होंने कई छत्तीसगढ़ी लोक नाट्यों का निर्देशन भी किया है। इनकी संस्था ‘संगम नाट्य समिति’ की शुरुआत 2012 में हुई। हाल ही में संगम नाट्य समिति का उत्कृष्ट कार्य देखते हुए ‘बिलासा सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।