प्रवास के लिए गंगा तट पर पहुंचने लगे खंजन पक्षी

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हरिद्वार। हिमालय की उतंग शिखरों पर बर्फ पड़ने के साथ ही हिमालय के सैकड़ों प्रजाति के पक्षी उत्तर व दक्षिण भारत के मैदानी क्षेत्रों, ताल-तलैयों में छह मास के प्रवास पर प्रतिवर्ष आते हैं। इस बार शरद् ऋतु का आगमन अपेक्षाकृत अधिक देर से होने से पक्षी मैदानी क्षेत्रों में प्रवास हेतु करीब 15 दिन देर से पहुंचे हैं।

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक प्रो. दिनेश भट्ट ने बताया कि हिमालय का सुन्दर नेत्रों वाला  हरिद्वार व भारत के अन्य मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने लगा है। कजरारी आंखों वाले खंजन की पांच-छह प्रजातियों में से तीन प्रजातियां माइग्रेटरी है जो प्रतिवर्ष, लेह-लद्दाख, कश्मीर, कुल्लू-मनाली, नीति-माणा जैसे दुर्गम पर्वतीय स्थलों से निकलकर शरद प्रवास पर मैदानी क्षेत्रों में आती है और वसंत ऋतु में पुनः ‘प्रणय-लीला’ करने वापस अपने धाम पहुंच जाती है।
डा. भट्ट ने बताया कि खंजन पक्षी को ग्रे-वैगटेल या ग्रे-खंजन के नाम से भी जाना जाता है जो अपनी लम्बी दुम, सलेटी-पीठ, तथा पीले पेट और बार-बार दुम ऊपर-नीचे गिराने व उठाने के कारण आसानी से पहिचाना जा सकता है। दुम को बार-बार ऊपर-नीचे करना सभी खंजनों की विशेषता है। उन्होंने कहा कि हिमालयी खंजन व केवल उत्तर भारत के क्षेत्रों में अपितु मुम्बई व दक्षिणी पठार के अनेक क्षेत्रों तक पहुँच जाता है और इनकी याद्दाश्त इतनी तेज होती है कि जिस क्षेत्र व बगीचों में पिछले वर्षों में आती है उसी क्षेत्र को ये प्रतिवर्ष शीत प्रवास हेतु चुनती है।
प्रसिद्ध साहित्यकार मैथलीशरण गुप्त तो इस मोहक खंजन से इतने मोहित हुये कि महाकाव्य ‘साकेत’ में उन्होंने लक्ष्मण की सुन्दर नेत्रों की तुलना इस पक्षी के चपल आँखों से की।
संस्कृत विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. विनय सेठी के अनुसार अन्य सुन्दर पक्षियों का चित्रण भी हमारे संस्कृत साहित्यकारों ने खूब किया है। सूरदास ने भ्रमरगीत द्वारा, जायसी ने पद्मावत द्वारा चन्द्र चकोर का प्रेय, हंस की आकर्षक चाल, चकवा-चकई व तोता-मैना की कथा का मोहक वर्णन किया है। प्रवासी पक्षियों में ‘सुरखाब के पंख’ की बात सर्वत्र विदित है।
डा. भट्ट की बायोअकाउस्टिक लैबोरेट्री के शोध छात्र रोबिन व पारूल ने बताया कि इन दिनों उन्होंने ग्रे-वैगटेल (खंजन की एक प्रजाति) को यदा-कदा गाते हुये सुना है। पक्षी-वैज्ञानिकों के लिये यह कौतुहल का विषय है कि जब बसंत और ग्रीष्म में पक्षियों में गीत-संगीत व प्रजनन का समय समाप्त हो गया है तो शरद में गीत गाकर यह पक्षी क्या कहना चाहता है?
उल्लेखनीय है कि डा. दिनेश भट्ट की प्रयोगशाला भारत में पक्षी-गीत-संगीत- संवाद की पहली व अग्रणी प्रयोगशाला है जहाँ पक्षी प्रजनन व संवाद के क्षेत्र में कार्य हो रहा है। अभी हाल ही में प्रो. दिनेश भट्ट के नेतृत्व में विश्व के ‘संवाद-वैज्ञानिकों’ का महासम्मेलन हरिद्वार में सम्पन्न हुआ जिसमें 137 विदेशी व 120 भारतीय वैज्ञानिकों ने भाग लिया, जो न केवल गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के लिये अपितु पूरे देश के लिये गौरव का विषय है।वर्तमान में प्रो. भट्ट के शोध टीम में सन्तोष, मेघा, आशीष इत्यादि कार्यरत हैं।