प्रदेश में ऑर्गेनिक उत्पादों को बढ़ावा देने की जरूरत : मुख्यमंत्री

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दुनियाभर में जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। उत्तराखंड जैविक खेती का प्रमुख केंद्र बन सकता है। इसकी संभावनाओं के मद्देनजर प्रदेश में जैविक उत्पादों को बढ़ावा देने की जरूरत है। ये बातें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कही है। वे शुक्रवार को डोइवाला स्थित ग्राम खाती में सीएसआईआर-भारत पेट्रोलियम के तत्वावधान में विकसित उन्नत गुड़ भट्टी के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आईआईपी द्वारा विकसित इस आधुनिक गुड़ भट्टी से प्रदूषण भी कम होगा। भट्टी से जो गुड़ बनाया जा रहा, उसमें प्रयुक्त होने वाले गन्ने के उत्पादन में भी जैविक खेती का प्रयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि 25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस के अवसर पर सूर्यधार बांध का शिलान्यास किया जाएगा। लगभग 60 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस बांध से डोइवाला और उसके आसपास के क्षेत्रों में पूर्ण ग्रेविटी का पेयजल उपलब्ध होगा, जबकि लगभग 900 करोड़ की लागत से बनने वाले सौंग बांध से देहरादून में पूर्ण ग्रेविटी का पेयजल उपलब्ध होगा। इससे भू-जल स्तर में आ रही गिरावट को कम करने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि अगले वर्ष सोंग नदी पर बांध बनाने की शुरुआत हो जाएगी। सरकार की योजना है कि देहरादून से ऋषिकेश तक लोगों को पूरी ग्रेविटी का पेयजल उपलब्ध हो सके। लोगों को ट्यूबवेल के पानी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। पानी के लिए लोगों को बिजली पर निर्भर भी नहीं रहना पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि अकेले ट्यूबवेलों की विद्युत खपत पर ही वर्तमान में 221 करोड़ रुपये का व्यय भार आ रहा है, जिसमें से लगभग 65 करोड़ रुपये अकेले देहरादून के ट्यबवेलों का है। ग्रेविटी आधारित पेयजल की आपूर्ति से विद्युत पर होने वाला व्यय भार भी बचेगा। 14 जनवरी 2018 से देहरादून में सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नालॉजी (सीपैट) की कक्षाएं शुरू कर दी जाएंगी। शीघ्र ही प्रदेश में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नालॉजी(निफ्ट) की भी शुरुआत की जाएगी। इसके लिए रानीपोखरी में भूमि उपलब्ध कराई जा चुकी है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि चीड़ की पत्तियों से तारपीन के तेल निकालने एवं उसके कचरे से बायोफ्यूल तैयार करने के लिए आईआईपी के साथ सरकार ने एमओयू साइन किया है। यह वेस्ट को बेस्ट में परिवर्तित करने का एक प्रयास है। इससे गर्मियों में पिरूल के जंगलों में वनाग्नि से बचाव होगा। जंगल एवं जीव जन्तुओं का भी संरक्षण होगा। इससे जहां सरकार को राजस्व प्राप्त होगा, वहीं स्थानीय लोगों को बेहतर रोजगार भी मिलेगा। राज्य के आठ पहाड़ी जिलों अल्मोड़ा, चमोली, नैनीताल, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, टिहरी एवं उत्तरकाशी में पिरूल के कलेक्शन सेंटर स्थापित किए जाएंगे।