मिसाल: मायानगरी से अभिनय के गुर पहाड़ों तक लाता है ये उत्तराखंडी कलाकार

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32 साल के विरेंद्र पुंडियाल आज कला और रंगमंच के क्षेत्र का जाना माना नाम है। विरेंद्र की जड़ें अल्मोड़ा के सल्ट इलाके से हैं और अब ये इलाका वीरेंद्र की कर्मभूमि भी बन गया है।बचपन से ही वीरेंद्र थियेटर,नृत्य,कला से जुड़े रहे हैं। आज भी अपने सफर को याद करते हुए बताते हैं कि कैसे स्कूल में उनकी टीचरें सभी कार्यक्रमों में उनसे परफॉर्म करने को कहतीं थी और वो खुशी- खुशी इन सभी में हिस्सा लेते थे।

दिल्ली में स्कूल की पढ़ाई करने के बाद वीरेंद्र ने आर्मी में भर्ती की इच्छा के चलते बारहवीं की परीक्षा सल्ट से ही दी। स्कूल खत्म करने के बाद वीरेंद्रे ने दिल्ली से ग्रेजुएशन किया अौर प्राइवेट कंपनियों में काम किया लेकिन अपने रंगमंच के शौक को बरकरार रखने के लिये साथ-साथ पहाड़ी थियेटर ग्रुपस के साथ देश के अलग अलग कोनों में परफॉर्म करना भी जारी रखा।

वो बताते हैं कि, “2006 में मेरठ में मैने रामलीला में हिस्सा लिया और फिर वहां थियेटर के लोगों के साथ जुड़ा, तब तक मुझे थियेटर के बारे में ज्यादा नहीं पता था। इसके बाद 2007 में मैनें पार्ट टाइम थियेटर शुरू किया और 2010 में नौकरी छोड़ कर फुल-टाइम थियेटर से जुड़ गया।”

24 साल की कम उम्र में नौकरी छोड़ना जैसा फैसला लेना वीरेंद्र के लिये आसान नहीं था। लेकिन जहां हुनर और लगन होता है वहां हार कभी नहीं होती और इसकी मिसाल है वीरेंद्र। 2012 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के सिक्किम सेंटर में वीरेंद्र को दाखिला मिला और 2013 में पास आउट होने के बाद वीरेंद्र के पास काम की कोई कमी नही रही।

वीरेंद्र ने स्टार प्लस के सीरियल जैसे कि एक घर बनाऊंगा, एक हसीना थी, सावधान इंडिया में भी अपनी कला और निर्देशन का जौहर दिखाये हैं।

लेकिन मायानगरी में इस कामयाबी से वीरेंद्र को शांति नहीं मिली। वो हर साल गांव जाते थे और अपने पुराने दोस्तों से मिलते थे जो उनकी कामयाबी को देखकर खासे खुश होते हैं। दोस्तों ने वीरेंद्र को गांव आकर अपने गांव और आसपास के बच्चों को कला और अदाकारी के गुर सिखाने की बात कही। बस फिर क्या था मानो वीरेंद्र को अपनी मंज़िल की तरफ जाती सीढ़ी मिल गई।

2015 में इसी सोच के साथ अल्मोड़ा में रंगमठ थियेटर ग्रुप की शुरुआत हुई। शुरु में इस थियेटर ग्रुप से 10-15 बच्चे जुड़े और हाल ही में वीरेंद्र ने 30 दिन की वर्कशॉप रामनगर में की जिसमे 20 बच्चों ने हिस्सा लिया।

narendra pundiyal

वीरेंद्र बताते हैं कि, “टीम बनाने में कठनाई होती है। स्कूल के बच्चे आते हैं पर स्कूल खत्म होने के बाद ये बच्चे अलग-अलग जगह चले जाते हैं और फिर से नई टीम बनानी पड़ती है। बच्चों और अभिभावकों की सोच है कि कोर्स करते करते उन्हे फिल्म या टीवी में रोल या नौकरी मिल जाये।” वीरेंद्र इसी सोच को बदलने में लगे हुए हैं। वो चाहते हैं कि छात्र इस बात को समझे कि इस क्षेत्र में भी कड़ी मेहनत औऱ अभ्यास उतना ही ज़रूरी है जितना किसी और क्षेत्र में।

इस साल अप्रैल में वो अल्मोड़ा के दूरदराज़ के इलाकों में एक वर्कशॉप करना चाहते हैं ताकि वहां के बच्चों को भी अपनी कला तराशने का मौका मिल सके। वीरेंद्र अपने सफर को याद करते हुए कहते हैं कि, “मेरे दोस्तों में भी टैलेंट था लेकिन दिशा देने वाला कोई नहीं मिला इसलिये सबके मन में थियेटर है पर वो सरकारी नौकरी कर रहे हैं। मुझे मौका और दिशा दोनों मिली इसलिये मैं आज इस मुकाम पर हूं कि देश को और कई वीरेंद्र दे सकता हूं।”

न्यूजपोस्ट की टीम वीरेंद्र के इस सफर और पहाड़ों में छुपे टैलेंट को तराशने की कोशिश को सलाम करता है। हम उम्मीद करते हैं कि वीरेंद्र की कोशिश रंग लायेगी और फिल्म, थियेटर और टीवी की दुनिया को ज्यादा से ज्यादा पहाड़ का टैलेंट देखने को मिलेगा।