डब्ल्यूआईसी इंडिया में रूसी कलाकारों ने शास्त्रीय नृत्य से बांधा समां

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24 फरवरी यानि शनविार की शाम देहरादून की वादियों में शास्त्रीय संगीत और नृत्य की गूंज रही।ये गूंज और ज्यादा खास इसलिये रही क्योंकि इसे बिखरने वाले कलाकार केवल भारत से ही नहीं बल्कि हज़ारों किलोमीटर दूर रूस से भी आये थे। देहरादून स्थित वर्लड इंटीग्रेशन सेंटर (डब्लूआईसी) में शनिवार शाम नाट्यांजली का आयोजन किया गया। ये एक कुचीपुड़ी नृत्य का डांस फॉर्म है। इस खूबसूरत प्रस्तुति को पद्मा रागिनी पट्टू और उनके रूसी डांस दल ने पेश किया।नाट्यांजलि को रुस से आई 7 कलाकारों ने प्रस्तुत किया और दर्शकों से खूब वाहवाही बटोरी।

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इस आयोजन के बारे में बताते हुए डब्लूआईसी के पब्लिक रिलेशन हेड ज़बील मोहम्मद ने बताया कि ”आए दिन डब्लूआईसी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करता है और नाट्यांजलि इसलिए खास हैं क्योंकि इसमें परफॉर्म करने वाले ज्यादातर क्लासिकल डांसर रुशियन है।उन्होंने कहा कि डब्लूआईसी हर महीने सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजन करता है। और इस नाट्यांजलि को चुनने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही था कि क्लासिकल डांस की शुरुआत भारत से हुई है  और डब्लूआईसी के माध्यम से भी हम भारतीय कला और संस्कृति को ही बढ़ावा दे रहे हैं।”

वहीं रुसी कलाकार यूलिया बुनानी ने बातचीत में बताया कि ”देहरादून का हमारा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा।यहां के लोग बहुत फ्रेंडली और अच्छे हैं।यूलिया ने कहा कि देहरादून बहुत ही शांत और सुंदर जगह है। यहां आते हुए हमे  बहुत हरियाली दिखी,और यहां का मौसम बहुत अच्छा है ना ज्यादा सर्दी है ना गर्मी ।यूलिया से यह पूछने पर कि उन्होंने कुचीपुड़ी डांस क्यों सीखा इसपर उन्होंने कहा कि कुचीपुड़ी रुसी लोगों के लिए बहुत अलग और हटकर है जिसे करने के लिए बहुत एकाग्रता की जरुरत होती है और साथ ही ऐसे डांस फॉर्म से हमें दूसरे कल्चर को समझने का मौका मिलता है।”

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पद्म रागिनी पुट्टू के नेतृत्व में, नाट्यांजलि पद्म भूषण गुरु वम्पातिचिन्ना सत्यम की कुचीपुडडी नृत्य की शैली का प्रदर्शन किया। यह नाट्यांजलि तपस्या एंड इंटरनेशनल स्कूल ऑफ कुचीपुड़ी,मास्को रशिया के क्लासिकल डांसर द्वारा किया गया। कार्यक्रम की चीफ गेस्ट सीनियर आईएएस ऑफिसर भूपिंदर कौर औलख थी।कार्यक्रम को देखने के लिए अलग-अलग स्कूल की छात्राएं पहुंची थी।कार्यक्रम के अंत में डब्लूआईसी के मैनेजिंग डायरेक्टर सचिन उपाध्याय ने सभी कलाकारों को सम्मानित किया।