मलाईदार कुर्सियों पर काबिज हैं 118 करोड़ के घोटाले के सूत्रधार

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नेशनल हाइवे भूमि अधिग्रहण के मुआवजे में हुए 118 करोड़ के घोटाले की जांच देर रात बंद कमरे में चलती रही। सवाल यह उठ रहा है कि एनएच के चौड़ीकरण व मुआवजे के वितरण को लेकर समय समय पर उच्चाधिकारियों द्वारा समीक्षा बैठकें की जाती रहीं, लेकिन चार सालों तक यह खेल पकड़ में क्यों नहीं आया? कहीं न कहीं इन अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के दायरे में आ गई है। एक अहम सवाल यह भी है कि इस घोटाले की शुरूवात कृषि भूमि को अकृषक कराकर हुई, लेकिन कृषि भूमि को 143 के जरिए अकृषक घोषित करने वाले अफसरों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है और वह अभी भी मलाईदार कुर्सियों पर काबिज हैं।

नेशनल हाइवे 74 के भूमि अधिग्रहण में हुए घोटाले की जांच कमिश्नर डी सेंथिल पांडियन ने शुरू की है। गहनता से एक एक पत्रावली का अवलोकन किया जा रहा है। जांच के दायरे में बाजपुर व गदरपुर की 120 ऐसी पत्रावली हैं जिनकी 143 की गई है। पूरा खेल नेशनल हाइवे की जद में आ रही कृषि योग्य जमीनों को अकृषि में करा कर किया गया है, क्योंकि कृषि योग्य भूमि के मुआवजे की तुलना में अकृषि की भूमि का मुआवजा दस गुना अधिक होता है। कमिश्नर पांडियन ने अपनी शुरूवाती जांच में 118 करोड़ के घोटाले की बात कही थी। इस प्रकरण में सवाल यह उठ रहा है कि जब 2013 से ही इस खेल की शुरूवात हो गई थी तो समय समय पर उच्चाधिकारियों की द्वारा की गई समीक्षा बैठकों में यह घोटाला पकड़ में क्यों नहीं आया? यदि समय रहते अफसरों ने खेल को पकड़ लिया होता तो शायद इतना बड़ा घोटाला नहीं हो पाता। कहीं न कहीं इन समीक्षा बैठकों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह सभी जानते हैं कि जमीनों की बैक डेट में 143 की गई, क्योंकि 143 का परवाना उसी वक्त अमल दरामद नहीं हुआ। खसरा खतौनी में मौके पर खेती दर्शायी जाती रही, जबकि कागजों में भूमि को अकृषि घोषित किया जा चुका था। जमीनों की143 करने में पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार, एसडीएम की भूमिका रहती है। अब यह बात उजागर हो चुकी है कि कौन कौन अफसर इसके दायरे में आ रहे हैं, फिर भी इन अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है। आज की तारीख में भी यह अफसर मलाईदार कुर्सियों पर काबिज हैं।