उत्तराखंड में सूरज का सितम बढ़ता जा रहा है अप्रैल की शुरुआत में पारा सालों का रिकार्ड तोड़ रहा है। आने वाले दिनों में स्थति और भी खराब हो सकती है। ऐसे में उत्तराखंड के वनों में फायर सीजन की शुरुआत हो चुकी है विभाग फायर लाइन दुरुस्त करने में जुटा है लेकिन वन विभाग की आग से निपटने की शैली आज भी सदियो पुरानी है जो विभाग की पोल खोल रही है।
उत्तराखंड अपने भौगोलिक स्थिति में वनों के बीच बसा प्रदेश है जंहा नजर दौड़ाओं वही पहाड़ और वनों का सुन्दर नजारा दिखता है। बीते कुछ सालो में उत्तराखंड में तेज़ी से वनों का दोहन और हनन हुआ है जिस के पीछे वन माफिया और आग मुख्य कारण रहे है। गर्मियां शुरू होते ही जंगलो में फायर सीजन की शुरुवात हो जाती है जिसमे बेशकीमती लकड़ी के साथ साथ कई वनस्पतियां और जीव जंतु जल कर ख़ाक हो जाते है। ऐसे में वन विभाग के आग से निपटने के तैयारियों पर सवाल उठने लाजमी है विभाग आज भी सदियो पुराने पारम्परिक,साधन विहीन तरीको से आग से लड़ने की तैयारी करता है।
ऐसा नहीं है कि वन विभाग के पास उपकरण नहीं है उपकरण है लेकिन साहब ने रेंज कार्यालय में इन उपकरणों को शोपीस बना कर रखा हुआ है। देखिये ये है ऋषिकेश बड़कोट रेंज ऑफिस का नजारा जंहा आग से निपटने के लिए सब कुछ उपकरण है।सिर्फ डेमो के लिए ,वन कर्मी पेड़ो से डंडिया तोड़ कर फायर सीजन से लड़ने की तैयारी करते है।