‘शीशे’ तराशकर हीरे बना रहा ’द्रोणाचार्य’

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    कबीर ने कहा गुरू और भगवान एक साथ खड़े हो तो किसे प्रणाम करना चाहिए। गुरू को अथवा गोबिंद को ऐसे स्थिति में गुरू केे श्री चरणों में शीश झुकाना उत्तम है। जिनकी कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन आज के शिक्षको की हरकतों से लोग गुरू गोविन्द दोऊ खेड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताया वाले कबीर के दोहे से मुंह फेर रहे हैं लेकिन आज भी ऐसे शिक्षक हमारे समाज में मौजूद हैं। जिन से उक्त दोहा चरित्रार्थ होता है। गंगोलीहाट पिथौरागढ़ के रहने वाले जोगेन्द्र बोरा उन चुनिंदा शिक्षकों में सूमार हैं जिनकी मिशाल दी जाती है। इन दिनों जोगेन्द्र बोरा एक बार फिर चर्चाओं में हैं। यह चर्चा उनके छात्र सतेन्द्र की वजह से है। जिस ने फिलीपींस के पुएर्टो प्रिसेंसा में हुई एशियन जूनियर बाॅक्सिंग चैपियनशिप में भारत को रजत पदक दिलाया। सतेन्द्र को बाॅक्सिंग के लिए प्रेरित करने वाले व बाॅक्सिंग सिखाने वाले जोगेन्द्र बोरा ही हैं। जिनकी बदौलत आज सतेन्द्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी बने हैं।
    दुर्गम से अतिदुर्गम में रहे तैनात
    राजकीय इंटर काॅलेज चैनघाट चमोली जनपद के सबसे दुर्गम विद्यालयों में से एक है। विकास खंड घाट के इस क्षेत्र की हालत इस कदर खराब है कि एक बार अगर सड़क बंद हो गयी तो सड़क खुलने में महीनों का समय लग जाता हैं। सरकारी कर्मचारी व अधिकारी इस क्षेत्र में जाने से पल्ला झाड़ते रहते हैं लेकिन जोगेन्द्र बोरा ने शिक्षक के पद को पेशे से ना जोड़ेते हुए शिक्षक धर्म का चरित्रार्थ किया व इस क्षेत्र में एक बाॅक्सिंग क्लब का गठन किया।
    खुद जुटाते जरूरी उपकरण
    खुद के खर्चे पर जोगेन्द्र बच्चों के लिए बाॅक्सिंग खेलने के लिए जरूरी उपकरण जुटाते व उन्हें बाॅक्सिंग के लिए प्रेरित करते। इस दुर्गम क्षेत्र में करीब 20 छात्र-छात्राओं को वे बाॅक्सिंग का प्रशिक्षण दे रहे थे। जिनमे से दो छात्रा मनीषा व आशा ने राज्य स्तर पर बाॅक्सिंग में बेहतरीन प्रदर्शन किया वही हरीश ने राष्ट्रीय स्तर पर रजत पदक जीता। जोगेन्द्र के छात्रों के लिए समर्पण भाव के चर्चे घाट विकास खंड में आम है।
    अब पिथौरागढ़ ली तैनाती
    14 जुलाई को जोगेन्द्र का स्थानातरण गंगोलीहाट पिथौरागढ के लिए हुआ। अब वे वहां भी बाॅक्सिंग क्लब का गठन करेंगे। जोगेन्द्र कहते कि पहाड़ों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है बल्कि उन्हें तलाशने व तराशने की जरूरत है। हमारे नीति नियंता अगर सही से पहाड़ों पे ध्यान दे तो पूरे विश्व में उत्तराखंड का डंका बजेगा