अहोई अष्टमी का जानें शुभ मुहूर्त

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हरिद्वार, अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। करवा चौथ के चार दिन बाद मनाए जाने वाला यह व्रत संतान की लम्बी आयु के लिए माताएं रखती हैं। संतान की सलामती से जुड़े इस व्रत की बहुत महत्ता है। इस व्रत को हर महिला अपने बच्चे के स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए करती है।

ज्यातिषाचार्य पं. प्रदीप जोशी के अनुसार, कुछ महिलाएं इस व्रत को बच्चा प्राप्ति के लिए भी करती हैं। कहा जाता है कि अहोई अष्टमी का व्रत करने से अहोई माता खुश होकर बच्चों की सलामती का आशीर्वाद देती हैं। इस बार अहोई अष्टमी व्रत 12 अक्टूबर को है। तारों और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। अहोई व्रत का शुभ मुहूर्त सुबह 6.14 से 7.28 बजे तक तथा शाम 6.39 बजे से शुरू है। इस बार अहोई 6 बजकर 55 बजे शुरू होगी तथा 13 अक्टूबर को सुबह 4.59 बजे तक रहेगी।

अहोई अष्टमी व्रत की विधि
व्रत के दिन प्रातः उठकर स्नान करें और पूजा के समय ही संकल्प लें कि हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन के लिए अहोई व्रत कर रही हूं। इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी निर्मित किया जाता है। माता के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखते हैं और दिया रखकर कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय चावल हाथ में लिए जाते हैं। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है। पके खाने में चौदह पूरी और आठ मठरी का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है। बायने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को अर्घ किया जाता है।

ज्यातिषाचार्य पं. प्रदीप जोशी ने बताया कि, “अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध-भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें, लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भरकर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती है।”