दून के बाद अब डीयू के ‘दंगल’ में जुटे छात्र नेता

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दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव के लिए संगठनों ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। डीयू की दोनों मुख्य पार्टियां एबीवीपी और एनएसयूआई ने अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। इसी क्रम में अब जेएनयू और डीयू में चुनावी जमीन को मजबूती देने में उत्तराखंड के छात्र नेता भी जुट गए हैं।
उत्तराखंड में छात्र संघ चुनावों का महासंग्राम थम चुका है। अब बारी है दिल्‍ली यूनिवर्सिटी और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव की। आठ सितंबर को जेएनयू और फिर 12 सितंबर को डीयू में छात्र संघ चुनाव होने हैं। चुनाव में अपने संगठनों को मजबूत करने के मकसद से उत्तराखंड के छात्र नेताओं ने भी दिल्ली में डेरा डाल दिया है। प्रदेश के विभिन्न कॉलेजों में छात्र संघ पदों पर जीतकर आए छात्र डीयू और जेएनयू के चुनावों के प्रचार में जुटे हैं। संगठन से जुड़े कार्यकर्ता दलों में बंटकर कॉलेजों और यूनिवर्सिटी कैंपस में चुनाव अभियान में जोर शोर से लगे हैं।
एबीवीपी की बात करें तो लगातार दो कॉलेजों में करारी शिकस्त के बाद राज्य के सबसे बड़े कॉलेज डीएवी पीजी कॉलेज में जीत का परचम लहराने और इससे पूर्व डीबीएस मेें भारी मतों से जीत हासिल की। इसके बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्र महासंघ चुनाव में भी सभी पदों पर शानदार जीत दर्ज कर संगठन के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। अब प्रदेश में एबीवीपी से जुड़े छात्र दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव प्रचार में जुटे हैं। डीएवी छात्र संघ अध्यक्ष शुभम सिमल्टी का कहना है कि हर साल दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव में संगठन को मजबूती देने के लिए कार्यकर्ता यहां जमा होते हैं। इस साल भी अपनी पूरी ताकत से चुनाव जिताने के लिए मेहनत करेंगे।

उत्तराखंड मूल के छात्रों की संख्या है ज्यादा
दिल्ली यूनिवर्सिटी की बात करें तो अकेले दिल्ली में उत्तराखंड मूल के परिवारों की संख्या काफी ज्यादा है। यूनिवर्सिटी चुनाव में उत्तराखंड मूल के छात्रों की संख्या भी चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। ऐसे में दिल्ली और उत्तराखंड से जाकर डीयू के कॉलेजों में दाखिला लेने वाले नए छात्रों तक पहुंच बनाने में उत्तराखंड के छात्र नेताओं की अहम भूमिका रहती है। इसके अलावा छात्र राजनीति में डीयू का अपना एक अलग अस्तित्व है। यहां राजनीतिक जमीन तैयार करने का एक बड़ फायदा यह भी है कि यहां से देश की राजनीति के बड़े नेताओं तक पहुंच बनाना आसान हो जाता है। यही कारण है कि प्रदेश भर के छात्र नेता इन दिनों दिल्ली में डटे हैं।