मसूरी की 100 साल से भी पुरानी एतिहासिक जनमाष्टमी

    0
    1588

    जनमाष्टमी, हिन्दुओं का मुख्य त्यौहार है, अौर पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में, खासकर पहाड़ों की रानी मसूरी में जनमाष्टमी की महत्ता अलग ही है। सनातन धर्म मंदिर समिति के अंर्तगत आने वाले राकेश अग्रवाल इस पुरानी परंपरा को अाज भी जीवित रख रहे हैं।टीम न्यूज़पोस्ट से हुई खास बातचीत में राकेश ने बताया कि, “पहले गढ़वाल में केवल मसूरी और इंडो-चाईना बार्डर पर भगवान कृष्ण की डोली जनमाष्टमी पर निकाली जाती थी, अाज 100 साल से ऊपर हो चुके हैं और यह परंपरा मसूरी में चली आ रही है।

    जनमाष्टमी का जूलुस हर साल, जनमाष्टमी के बाद आने वाले रविवार को मनाया जाता है। मसूरी के आसपास के गांव जैसे कि क्यारकुली, भट्टा को बलराम और कृष्ण भगवान से जोड़ कर देखा जाता है, इन गांवों के सभी लोग 2-3 दिन तक शहर में हो रहे मेले में अपनी पारंपरिक पोशाक में आकर इस दिन का इंतजार करते थे।

    janmsashtami

    भगवान कृष्ण की डोली ठीक 1:30 बजे सनातन धर्म मंदिर, लैंडोर बाजार के प्रांगण से निकल कर पूरे शहर में अपने भक्तों के बीच घूम कर, रात 8 बजे मंदिर वापस आती है। लगभग एक दर्जन झांकी जिनमें छोटे-छोटे बच्चें कृष्ण-राधा की तरह तैयार होकर झांकियों के साथ आने वाली गाड़ियों के उपर बैठते हैं। इस दिन के लिए उत्तराखंड संस्कृति विभाग भी अपनी दो झांकियां यहां भेजता हैं।

    हजारों की संख्या में लोग मसूरी की सकरी गलियों में इकठ्ठा होकर भगवान कृष्ण की झांकी में फूलों की बारिश करते हैं और आर्शीवाद ग्रहण करते हैं। यह जूलुस मसूरी के इतिहास का एक अभिन्न अंग बन चुका है जिसे आने वाली पीढ़ियां अभी जुड़ नहीं रही हैं, राकेश जी कहते हैं कि, “हम परंपराओं का निर्वहन कर रहे हैं, आगे आने वाली पीढ़ी को अलग ही चुनौतिय़ों और चिंताओं से गुजरना है।”

    लेकिन अाज भी सब खोया नहीं है, अाने वाली पीढ़ी में बहुत से जुजहारू यूवा है जैसे कि निखिल ⁠⁠⁠⁠⁠अग्रवाल जिनका मानना है कि, “हम अपने बड़ों से सीख रहे हैं, और हमेशा कोशिश यह रहती है कि हम इस परंपरा को आगे लेकर जाए और पिछली पीढ़ी से भी अच्छा करें।