चारधाम यात्रा के पौराणिक मार्गों की होगी मैपिंग

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क्या आपने कभी सोचा है कि सालों पहले जब चारधाम के लिये सड़कों का जाल और हवाई सेवाऐं नहीं थी तो श्रद्धालू कैसे ये कठिन यात्रा पूरी करते थे? उस समय में ये रास्ते इतने सुगम न हो कर हिमालय की पहाड़ियों और कंदराओं से होकर गुज़रते थे। समय के साथ और सड़कों के निर्माण के साथ साथ इन रास्तों को भी भुला दिया गया। लेकिन अब इन रास्तों की दोबारा निशानदेही, पहचान और मैंपिग की जिम्मेदारी उठाई है इंडियन नैशनल ट्रस्ट फाॅर आर्ट एंड कल्चरल हेरीटेज (इनटेक) ने।

जियोग्राफिकल इंफाॅर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) प्राॅजेक्ट के तहत ये काम होगा जिसमें उन पारंपरिक रास्तों की खोज की जायेगी जो पहले इन जगहों तक जाने के लिये इस्तेमाल किये जाते थे और जिन्हें समय के साथ भुला दिया गया है। इसके तहत अभी तक हरिद्वार औऱ केदारनाथ के बीच के ऐसे पौराणिक मार्ग की मैपिंग का काम पूरा हो चुका है। इसकी लंबाई करीब 380 किमी है। इसके बाद अब हरिद्वार और बद्रीनाथ के बीच का मार्ग की पहचान काम शुरू होगा।

संस्था के उत्तराखंड प्रभारी लोकेश ओहरी का कहना है कि ” हम उन पारंपरिक रास्तो ंकी दोबारा तलाश कर रहे हैं जिन्हें समय के साथ भुला दिया गया है। इसके बाद हमारी कोशिश रहेगी कि इन रास्तों को आज के दिन के श्रद्धालुओं के लिये खोला जा सके”।

इन रास्तों की खोज के साथ साथ इन पर पड़ने वाले छोटे धार्मिक स्थलों की भी पहचान साथ साथ की जा रही है। ओहरी बताते हैं कि “आमतौर पर धार्मिक यात्राओं पर जाने वाले लोगों के लिये रास्ते में जगह जगह पर रुक पूजा करके आगे जाने पर ही यात्रा पूर्ण मानी जाती थी। हम उन जगहों को भी पहचानने की कोशिश कर रहे हैं”।